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यह है, साहब मिश्राजी और बाबू दूबेजी का कमाल!
-पहले दिन जेडीई डा. ओमप्रकाश मिश्र ने मंडलीय बैठक किया और दूसरे दिन बाबू आलोक कुमार दूबे ने विनियमतीकरण का फाइल तैयार किया और उसी दिन आदेश साहब ने आदेश भी जारी कर दिया, इतनी तेजी तो मुख्यमंत्री भी नहीं दिखाते
-जो विनियमतीकरण 33 साल में नहीं हुआ उसे साहब और बाबू ने मिलकर एक दिन में कर दिया, इसी को कहते मोटे लिफाफे का कमाल
-जनपद सिद्वार्थनगर के मार्डन उच्चतर माध्यमिक विधालय हल्लौर के तदर्थ शिक्षक सैयद इंतजार हुसैन रिजवी का स्थाई शिक्षक बनने का सपना तत्कालीन जेडीई डा. ओमप्रकाश मिश्र और कनिष्ठ लिपिक आलोक कुमार दूबे के 33 साल बाद पूरा हुआ, इसे कहतें लाटरी निकलना
-रिजवी साहब की लाटरी निकलने में जनपद सिद्धार्थनगर के डीआईओएस का भी हाथ रहा, क्यों कि इन्होंने ही 33 साल बाद विनियमतीकरण मंडलीय समिति के समक्ष विनियमतीकरण का प्रस्ताव मोटा लिफाफा लेकर रखा
-मंडल में शायद ही कोई विनियमतीकरण नियमानुसार हुआ होगा, अगर नियमानुसार होता तो 33 साल बाद विनियमतीकरण न होता, इसी को देखते हुए ही एमएलसी देवेंद्र प्रताप सिंह ने तत्कालीन जेडीए और बाबू की भूमिका की जांच करने की मांग की
-पेंशन सहित अन्य लाभ लेने के लिए ही शिक्षक विनियमतीकरण के लिए मुंह मांगी रकम साहबों और बाबूओं को देने के लिए तैयार हो जाते, एक-एक विनियमतीकरण में 25 से 30 लाख तक के खेल होने की शिकायत की गई, यही कारण हैं, कि पटल के लिए मारामारी होती
बस्ती। यूंही नहीं साहब डा. ओमप्रकाश मिश्र और बाबू आलोक कुमार दूबे की जोड़ी पूरे मंडल में चर्चित रही हैं। साहबों और बाबू का एक ही एजेंडा रहा है, चाहे जैसे अधिक से अधिक धन अर्जित करने का। जेडीई और बेसिक कार्यालय में अगर कोई काम कराना होता है, तो लोग सबसे पहले क्यों पटल सहायक को पकड़ते हैं? क्यों कि पटल सहायक ही साहबों के लिए कमाउपूत होतें है? अगर बाबू ने ओके कर दिया तो समझो साहब ने भी ओके कर दिया। बिना साहब के ओके के बाबू ओके कर ही नहीं सकता। भले ही काम चाहे लीगल हो या फिर इलीगल ही क्यों न हों? साहब और बाबू लीगल काम करने में उतना रुचि नहीं लेते जितना इलीगल काम में, क्यों कि इलीगल काम में ही मुंहमांगी रकम मिलती? कमाउपूत बाबू को साहब लोग कितना पसंद करते हैं, इसका उदाहरण आलोक कुमार दूबे के रुप में देखा जा सकता है। यह साहबों के लिए इस कदर कमाउपूत साबित हुए हैं कि इनके लिए चार वरिष्ठ लिपिकों की तिलांजलि साहब ने दे दी। एक ऐसे बाबू को जेडीई कार्यालय के सारे कामकाज को सौंप दिया गया, जिसकी नियुक्ति मंडलीय आडिट इकाई कार्यालय में हुई थी, लेकिन आज यह पूरे जेडीई कार्यालय में सबसे मजबूत बाबू बनकर उभरें है। इन्होंने कभी भी अपने मूल पद के दायित्व को नहीं निभाया। मंडल का शायद ही कोई ऐसा होगा जो इन्हें ईमानदार और अच्छा कहता होगा, यह आडिट का काम छोड़कर वे सारे काम करते हैं, जिसमें पैसे का आमद हो सके। यह पिछले छह साल से अनियमित रुप से जेडीई कार्यालय का कार्यभार देख रहे हैं, लेकिन आज तक एक भी जेडीई ने इनके अनियमित कार्यो को देखते हुए इन्हें इनके मूल पद पर नहीं भेजा, इससे साबित होता है, कि यह साहबों के लिए कितना कमाउपूत साबित हो रहे है। कहा जाता है, कि जेडीई कार्यालय में जितने भी नियमित/अनियमित कार्य होते हैं, उनमें दूबेजी का हाथ अवष्य रहता है। एक तरह से इन्होंने जेडीई कार्यालय का माहौल ही बदलकर रख दिया, सबसे अधिक कुंडाग्रस्त उन लिपिकों में देखी जाती, जिन्हें बाईपास करके दूबेजी को मलाईदार पटल दे दिया। साहबों ने भी कार्यालय के माहौल को खुषनुमा और भाईचारा बनाने का कोई प्रयास नहीं किया। बल्कि साहब लोग बाबूओं में ‘फूट डालो और मलाई काटोे’ का फारमूला अपनाते रहे। जिस तरह विनियमतीेकरण के मामले में भ्रष्टाचार किया गया, उसका खुलासा धीरे-धीरे हो रहा है। बस एमएलसी के शिकायत पर जांच होनी बाकी है। उसके बाद कई जेडीए और बाबू की पोल खुलने वाली है। जांच आज नहीं तो कल होने वाली हैं, अगर नहीं हुई तो विधानपरिषद में सवाल के जरिए सरकार को एमएलसी के द्वारा घेरा जाएगा।
अब जरा साहब और बाबू का कमाल देखिए। पहले दिन जेडीई डा. ओमप्रकाष मिश्र ने विनियमतीकरण का मंडलीय बैठक किया और दूसरे दिन बाबू आलोक कुमार दूबे ने विनियमतीकरण का फाइल तैयार किया और उसी दिन साहब ने आदेष भी जारी कर दिया, इतनी तेजी तो मुख्यमंत्री भी नहीं दिखाते है। जो विनियमतीकरण 33 साल में नहीं हुआ उसे साहब और बाबू ने मिलकर एक दिन में कर दिया, इसी को कहते मोटे लिफाफे का कमाल। जनपद सिद्वार्थनगर के मार्डन उच्चतर माध्यमिक विधालय हल्लौर के तदर्थ शिक्षक सैयद इंतजार हुसैन रिजवी का स्थाई शिक्षक बनने का सपना तत्कालीन जेडीई डा. ओमप्रकाश मिश्र और कनिष्ठ लिपिक आलोक कुमार दूबे के सहयोग से 33 साल बाद पूरा हुआ, इसे कहतें लाटरी निकलना। रिजवी साहब की लाटरी निकलने में जनपद सिद्धार्थनगर के डीआईओएस का भी हाथ रहा, क्यों कि इन्होंने ही 33 साल बाद विनियमतीकरण मंडलीय समिति के समक्ष विनियमतीकरण का प्रस्ताव मोटा लिफाफा लेकर रखा। मंडल में षायद ही कोई विनियमतीकरण नियमानुसार हुआ होगा, अगर नियमानुसार होता तो 33 साल बाद विनियमतीकरण न होता, इसी को देखते हुए ही एमएलसी देवेंद्र प्रताप सिंह ने तत्कालीन जेडीए और बाबू की भूमिका की जांच करने की मांग की है। पेंशन सहित अन्य लाभ लेने के लिए ही षिक्षक विनियमतीकरण के लिए मुंह मांगी रकम साहबों और बाबूओं को देने के लिए तैयार हो जाते, एक-एक विनियमतीकरण में 25 से 30 लाख तक के खेल होने की शिकायत की गई, यही कारण हैं, कि पटल के लिए मारामारी होती है।
सवाल उठ रहा है, कि आखिर 33 साल बाद क्यों विनियमतीकरण का प्रस्ताव मंडलीय समिति की बैठक में रखा गया, क्यों नहीं 33 साल पहले रखा गया? जबकि तदर्थ शिक्षक की नियुक्ति के एक साल में ही विनियमतीकरण की प्रक्रिया पूरी हो जानी चाहिए। रिजवी साहब प्रदेश के उन भाग्यशाली लोगों में हैं, जिनका स्थाई शिक्षक बनने का सपना मिश्राजी और दूबेजी ने पूरा किया। इनका जन्मतिथि 15 अप्रैल 1963 है। इनकी प्रथम नियुक्ति तदर्थ अध्यापक के पद पर जनपद सिद्वार्थनगर के मार्डन उच्चतर माध्यमिक विधालय हल्लौर में पांच नवबंर 1990 को हुई, और इनका विनियमतीकरण चार अप्रैल 2023 को तत्कालीन जेडीई डा. ओम प्रकाश मिश्र ने किया। यानि विभाग को 33 साल बाद रिजवी साहब का विनियमतीकरण याद आया। चूंकि इनकी नियुक्ति 1990 में हुई थी, इस लिए यह बच गए, अगर यही इनकी नियुक्ति 2000 के बाद हुई होती तो शिक्षक बनने का सपना, सपना ही रह जाता। अनेक ऐसे विनियमतीकरण करने के मामले में सामने आ रहे हैं, जिनका अनुमोदन ही नहीं हुआ। इसी लिए बार-बार कहा जा रहा है, कि इसकी जांच होनी आवष्यक है। अगर सही से जांच हो गई तो बाबू सहित कई लोग जेल में नजर आएगें। कहने का मतलब कोई भी ऐसा जेडीए नहीं आ रहें हैं, जो जेडीई कार्यालय के दूबेजी नामक बाबू की गंदगी को दूर कर सके।
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