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वेल डन अदीशा यूंही मां-बाप का नाम रोशन करती रहो!

वेल डन अदीशा यूंही मां-बाप का नाम रोशन करती रहो!


-बस्ती सल्टौआ शिवपुर के दुष्यंत सिंह की प्यारी लाडली कक्षा तीन की अदीशा सिंह ने वह कर दिखाया जिसे देखने का सपना हर मां-बाप का होता

-यह प्रदेश की सबसे कम उम्र की प्रकाशित लेखिका बन गई। इस पुस्तिक में अदीशा ने बचपन की मासूमियत, जिज्ञासा और कल्पना को दुनिया को बहुत ही सरल और सुंदर शब्दों में पिरोया

-कक्षा तीन की सात साल की अदीशा ने न केवल साहित्य क्षेत्र में बल्कि पूरे समाज में एक नई सोच को जन्म दिया

-महज दो वर्ष की उम्र में विश्व का संपूर्ण नक्शा ( वर्ल्ड मैप) याद कर लिया था और उनके ज्ञानवर्धक वीडियो आज भी यूट्यूब पर सराहे जाते हैं। उनकी ये उपलब्धियां न केवल चौंकाती हैं, बल्कि प्रेरणा भी देती

बस्ती। कौन कहता हैं, बच्चियां उचाईयों को नहीं छू सकती। बस्ती सल्टौआ शिवपुर के दुष्यंत सिंह की प्यारी लाडली कक्षा तीन की अदीशा सिंह ने वह कर दिखाया जिसे देखने का सपना हर मां-बाप का होता है। अदीशा सिंह बहुआयामी प्रतिभा की मिसाल है। इन्होंने ‘इमेजिनेशन दी वर्ल्ड वाया माई लेंसेस’ के माध्यम से साहित्य की दुनिया में अपनी विशिष्टि पहचान बनाई। यह प्रदेश की सबसे कम उम्र की प्रकाशित लेखिका बन गई। इस पुस्तिक में अदीशा ने बचपन की मासूमियत, जिज्ञासा और कल्पना को दुनिया को बहुत ही सरल और सुंदर शाब्दों में पिरोया है।  इस मकाम को हासिल करने में पापा दुष्यंत सिंह और मम्मी अनुष्का सिंह जो यूपीपीएस की तैयारी कर रही हैं, का बहुत बड़ा योगदान है। प्रदेश का पहला ऐसा परिवार हैं, जिसकी छोटी सी बेटी ने यह उपलब्धि हासिल की है। अदीशा के दादा विजय सेन सिंह भाजपा के वरिष्ठ नेता एवं पूर्व क्षेत्रीय अध्यक्ष रह चुके है। अदीषा के पिता दुष्यंत विक्रम सिंह खुद ओकलैंड यूनिवर्सिटी से एमबीए कर चुके है। पारिवारिक वातावरण ही अदीशा की उड़ान को दिशा दिया। अदीशा का यह प्रयास न केवल उनका व्यक्तिगत रहा, बल्कि यह पूरे राज्य और देश के लिए गर्व की बात है। इतनी छोटी से उम्र में इतनी बड़ी उपलब्लि अदीशा के लिए आसान नहीं रहा होगा। अदीशा ने न केवल साहित्य क्षेत्र में बल्कि पूरे समाज में एक नई सोच को जन्म दिया है। इसी लिए अदीशा सिंह से अधिक उसके मम्मी पाप अपनी छोटी सी बेटी पर नाज कर रहे है। कौन मां-बाप नहीं चाहते कि उसका बेटा/बेटा अपना और परिवार का नाम रोशन करें। उनकी कविताएं न केवल बालमन की सादगी और भावनाओं को उकेरती हैं, बल्कि यह भी साबित करती हैं कि रचनात्मकता की कोई उम्र नहीं होती। इस कविता संग्रह को ब्लूरोज पब्लिसर ने प्रकाशित किया है, और यह किताब न सिर्फ बच्चों, बल्कि बड़ों के बीच भी उत्सुकता और प्रशंसा का विषय बनी हुई है। इसमें प्रस्तुत रचनाएं कृ जैसे “फलफी वहाइट क्लाउड नानी लव हालीडे होम और अंडमान टीप’’ बचपन की मासूम आंखों से देखी गई दुनिया को सुंदरता के साथ पाठकों के सामने लाती हैं। अदीशा बहुआयामी प्रतिभा की मिसाल हैं, हुनर केवल लेखन तक सीमित नहीं है। वे एक ऐसी बाल प्रतिभा हैं, जिनकी जिज्ञासा और रचनात्मक ऊर्जा जीवन के कई क्षेत्रों में झलकती है। वे एक प्रशिक्षित कथक नृत्यांगना हैं, शास्त्रीय संगीत की विधिवत शिक्षा ले रही हैं,एक राष्ट्रीय स्तर की ताइक्वांडो चौंपियन रह चुकी हैंऔर साथ ही फ्रेंच भाषा भी सीख रही हैं। इतना ही नहीं, उन्होंने महज दो वर्ष की उम्र में विश्व का संपूर्ण नक्शा ( वर्ल्ड मैप) याद कर लिया था और उनके ज्ञानवर्धक वीडियो आज भी यूट्यूब पर सराहे जाते हैं। उनकी ये उपलब्धियां न केवल चौंकाती हैं, बल्कि प्रेरणा भी देती हैं। जब उम्र सिर्फ सात साल हो और सोच कल्पनाओं से कहीं आगे, तब जन्म लेती है ऐसी प्रतिभा, जो शब्दों को जीती है। अदीशा अभी लखनउ में मम्मी के साथ रहकर पढ़ाई कर रही है।

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