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तो क्या सांसद और विधायक निधि का नाम कमीशन निधि होना चाहिए?

तो क्या सांसद और विधायक निधि का नाम कमीशन निधि होना चाहिए?

-यही इस देश का भाग्य है, कि ऐसे लोगों को अपना नेता चुना, जिन्होंने उन चुनने वालों को ही चूना लगाकर अपना हित साध लिया

-भ्रष्टाचार में अधिकारी और नेता दोनों अंकठ डूबे हैं, जब मैने अपने रिष्तेदार नेता से कहा कि दाल में नमक क्यों नहीं खाते, कहने लगे जमाना बदल गया, नमक में दाल खाना चाहिए

-जब प्रधानों से पूछा जाता है, कि कमीशन क्यों लेते हो, कहते हैं, कि जब हमारा सांसद और विधायक कमीशन लेता है, तो अगर हमने ले लिया तो कौन सा गुनाह कर दिया, हम जिसे जीताते हैं, जब वह निधि में कमीशन लेता तो प्रधान ने लेलिया तो कौन सा पहाड़ टूट गया

-डीएम, कमिश्नर, तहसील, थाना और न्यायालयों के बाबू और पेशकार लेते हैं, तो हम क्यों न ले, यह भारत का अलिखित संविधान का मूल ढ़ाचा बन चुका इसे सुप्रीम कोर्ट भी नहीं छू सकता मोदी और योगीजी में क्या ताकत, जिस दिन हाथ लगाएगें सरकार ही शहीद हो जाएगी

-कमीशन एक तरह से भारतीय व्यवस्था का नया रक्त समूह बन गया, जिसे आम जनता को इसे अपनी नसों में चढ़वाना पड़ रहा

बस्ती। भ्रष्टाचार के खिलाफ निरंतर हथौड़ा चलाने वाले अधिवक्ता नरेंद्र बहादुर सिंह ने लिखा कि ऐसे प्रधान और सचिव बिरले होगें जो पीएम आवास, शोचालयों एवं ग्राम पंचायत के विकास कार्यो में कमीशन न लेते हों। जब पूछो तो कहते हैं, कि जब हमारा सांसद और विधायक निधि में कमीशन लेता है, तो हमने ले लिया तो कौन सा गुनाह कर दिया। लिखते हैं, कि डीएम, कमिष्नरी, तहसील, थाना और न्यायालयों के बाबू और पेशकार लेते हैं, तो हम क्यों न ले, यह भारत का अलिखित संविधान का मूल ढ़ाचा बन चुका इसे सुप्रीम कोर्ट भी नहीं छू सकता मोदी और योगीजी में क्या ताकत, जिस दिन हाथ लगाएगें सरकार ही शहीद हो जाएगी। कमीशन एक तरह से भारतीय व्यवस्था का नया रक्त समूह बन गया, जिसे आम जनता को इसे अपनी नसों में चढ़वाना पड़ रहा है। इस पोस्ट को लेकर अनेक लोगों ने अधिवक्ता के निर्भीक लिखने की पं्रषसा करते हुए लिखा कि बहुत कम लोग रह गए जो आप की तरह भ्रष्टाचार को लेकर आवाज उठाते है। सूर्यकलि सिंह ने लिखा कि भाई साहब आप बहुत सही कह रहे हो, भ्रष्टाचार में अधिकारी और नेता दोनों अंकठ डूबे हैं, जब मैने अपने रिष्तेदार नेता से कहा कि दाल में नमक क्यों नहीं खाते, कहने लगे जमाना बदल गया, नमक में दाल खाना चाहिए, जिस दिन हमने उनसे कहा उन्होंने बोलना ही बंद ही बंद कर दिया। राजकिशोर पांडेय लिखते हैं, कि इतना सत्य है, कि आप खरी खरी लिखने से नहीं चूकते। विषय बहुत ही चिंताजनक है। इसके लिए सामाजिक जागरण की आवष्यकता है। विजय कुमार लिखते हैं, कि भ्रष्टाचार के खिलाफ लिखते हैं, आपको बहुत-बहुत बधाई, लेकिन इसके लिए लड़ाई लड़ना पड़ेगा, वरना आने वाली पीढ़ी के लिए हम्हीं दोषी होगें, जिंदा कौमें संघर्ष करती है। दिनेश कुमार पांडेय लिखते हैं, कि यही इस देश का भाग्य है, कि ऐसे लोगों को अपना नेता चुना, जिन्होंने उन चुनने वालों को ही चूना लगाकर अपना हित साध लिया। राम मणि शुक्ल साहित्यकार लिखते हैं, कि बहुत खूब नरेंद्रजी। धन्यवाद, साधुवाद, निर्विवाद, नमो हनुमते। नमो रघुपमे। इ्रद्रमणि त्रिपाठी निभर्हक लेखन के लिए बहुत-बहुत साधुवाद। कुंचर विजय सिंह लिखते हैं, कि तो क्या सांसद विधायक निधि को कमीशन निधि का नाम दे दिया जाए। मनोज सिंह लिखते हैं, कि बिना कमीशन के कोई काम नहीं होता, भुगतान में तो पहले कमीशन देना पड़ता है। श्रीभगवान सिंह लिखते हैं, कि भ्रष्टाचार में डूबे पूरे तंत्र की इस भयानक स्थित को सहज स् वीकार कर लेने के बजाए आप इस पर सोचते हैं, लिखते है, अपनी प्रतिक्रिया देते हैं, और इस त्रासद स्थित से उद्वेलित और चिंतित होते है। इससे इतना तो स्पष्ट हैं, कि आप जिंदा है। जैविक रुप से ही नहीं, नैतिक रुप से भी। कहते हैं, कि समाज में ऐसे लोगों की संख्या बहुत कम रह गई हैं, जिनमें रीढ़ की हडिडयां पूरी तरह गली न हो। और वह सीधे खड़े होकर किसी से भी नजर मिलाकर खुद्वारी के साथ बात कर सकते हों।

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