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शीर्ष अदालत ने कहा, "ED ने कहा कि आरोपी गैरजरूरी दस्तावेज मांग रहा है. सैकड़ों आवेदन दाखिल किए. रिकॉर्ड ऐसा नहीं दिखाते. ED और CBI दोनों मामलों में बहुत अधिक आवेदन दाखिल नहीं हुए
इसलिए मुकदमे में देरी के लिए आरोपी को ज़िम्मेदार मानने के निचली अदालत और हाई कोर्ट के निष्कर्ष से हम सहमत नहीं हैं. आरोपी को दस्तावेज देखने का अधिकार है."
सुप्रीम कोर्ट ने आगे कहा, "ED के वकील ने 3 जुलाई तक जांच पूरी करने की बात कही थी. यह अक्टूबर 2023 में सुप्रीम कोर्ट को बताए गई 6-8 महीने की सीमा के परे है. इस देरी के चलते निचली अदालत में मुकदमा शुरू हो पाने का सवाल ही नहीं था. व्यक्तिगत स्वतंत्रता एक मौलिक अधिकार है. इसका बिना उचित वजह के हनन नहीं हो सकता है. निचली अदालत और हाई कोर्ट अक्सर इस बात को नहीं समझते कि बेल को रूल और जेल को अपवाद माना जाता है. इस वजह से सुप्रीम कोर्ट में जमानत याचिकाओं की बड़ी संख्या आती है."
'न्यायिक प्रक्रिया को ही दंड नहीं बनाया जाना चाहिए'
सुुप्रीम कोर्ट ने कहा कि न्यायिक प्रक्रिया को ही दंड (Process Is the Punishment) नहीं बनाया जाना चाहिए. मनीष सिसोदिया के देश छोड़ने की आशंका को लेकर कोर्ट ने कहा कि आरोपी का समाज मे गहरा आधार है. उसके फरार होने का अंदेशा नहीं है. निचली अदालत ज़मानत की शर्तें तय कर सकती है. सबूत मिटाने की आशंका पर भी शर्ते तय की जाएं.
किन शर्तों पर जमानत?
ED ने दिल्ली सचिवालय न जाने की शर्त लगाने की मांग की, लेकिन ने कोर्ट ने मना कर दिया.
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