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सिर्फ एक दवा ने खत्म कर दिया गिद्धों का पूरा अस्तित्व, जानें इस तबाही की कहानी

सिर्फ एक दवा ने खत्म कर दिया गिद्धों का पूरा अस्तित्व, जानें इस तबाही की कहानी

देश में बीते दो दशक में गिद्धों की संख्या बहुत तेजी से कम हुई है. क्या आप जानते हैं कि किन दवाओं के कारण गिद्धों की संख्या में इतनी कमी आई है और उनके अस्तित्व पर सवाल खड़ा हो गया है.

बचपन में किताबों में आपने इंसानों और जानवरों के जीवन चक्र के बारे में जरूर पढ़ा होगा. लेकिन बीते कुछ सालों से गिद्धों की संख्या तेजी से कम हुई है और इसके पीछे की वजह एक दवाई है. आज हम आपको बताएंगे कि आखिर कैसे गिद्धों की संख्या कम हुई है .

गिद्ध

देश में गिद्धों की संख्या तेजी से कम हो रही है. बता दें कि भारत के सबसे पुराने जैव विविधता संरक्षण समूह बॉम्बे नेचुरल हिस्ट्री सोसायटी (बीएनएचएस) ने मार्च 2014 में केंद्रीय पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (एमओईएफसीसी) को एक पत्र लिखा था. इसमें सोसायटी ने पशुओं के इलाज के लिए इस्तेमाल की जा रही उन तीन दवाओं पर प्रतिबंध लगाने की मांग की थी, जिनकी वजह से देश में गिद्धों की मौत हो रही थी. 

इन दवाओं से गिद्धों की संख्या हुई कम

इस पत्र में चेतावनी दी थी कि तीन नॉन-स्टेरॉयडल एंटी इंफ्लैमेटरी ड्रग्स (एनएसएआईडी) का बेहिसाब इस्तेमाल करने से गिद्धों के संरक्षण के प्रयास को खत्म कर देगा. ये तीन दवाएं एक्लोफेनैक, कीटोप्रोफेन और निमेसुलाइड तो डाइक्लोफेनैक के विकल्प के तौर पर पेश की गई थी. लेकिन इसके चलते बड़े पैमाने पर गिद्धों की मौत होने के कारण भारत ने साल 2006 में जानवरों के लिए उसके इस्तेमाल पर प्रतिबंध लगा दिया था.

क्यों हुई गिद्धों की मौत

इंटरनेशनल यूनियन फॉर कंजरर्वेशन ऑफ नेचर (आईयूसीएन) के वल्चर स्पेशलिस्ट ग्रुप के सह-अध्यक्ष क्रिस बोडेन कहते हैं कि नॉन-स्टेरॉयडल एंटी इंफ्लैमेटरी ड्रग्स की वजह से हो रही गिद्धों की मौतें सीधे तौर पर नजर नहीं आती हैं. क्योंकि पक्षियों की मौत दवा खाने के दो-तीन दिन बाद होती है, उनके मुताबिक भारत ने गिद्धों की मृत्यु दर को तो कम कर दिया है, लेकिन जनसंख्या अभी तक स्थिर नहीं कर सका है.

क्या सच में विलुप्त हो रहे हैं गिद्ध

बता दें कि 1980 के दशक तक गिद्ध दिखना बहुत आम बात था. वर्ल्ड वाइड फंड फॉर नेचर (डब्ल्यूडब्ल्यूएफ) इंडिया की रैप्टर कंजर्वेशन प्रबंधक रिंकिता गुरव के मुताबिक वर्तमान में देश में गिद्धों की 8 प्रजातियां विलुप्त होने की कगार पर है. अंतरसरकारी संस्था बर्ड लाइफ इंटरनेशनल की ओर से कराई गई गिद्धों की गणना के मुताबिक 2003 में देश में गिद्धों की कुल आबादी 40,000 से अधिक थी, जो 2015 में घटकर 18,645 तक सिमट गई है. 

एमओईएफसीसी की ओर से जारी भारत की दूसरी राष्ट्रीय गिद्ध संरक्षण कार्य योजना (2020-25) के दावे के मुताबिक 2013 तक राजस्थान को छोड़कर बाकी हिस्सों में यह अनुपात घटकर दो प्रतिशत से नीचे आ गया है. जबकि राजस्थान में यह अभी भी पांच प्रतिशत के ऊपर बना हुआ है. जानकारी के मुताबिक अगर पशुओं के शवों में डाइक्लोफेनैक की मौजूदगी 1 फीसदी के नीचे आ जाती है, जब गिद्धों की संख्या को सुरक्षित माना जा सकता है.

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