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‘साहब’, बिना ‘दस हजार’ लिए ‘हस्ताक्षर’ नहीं ‘करेगें’!

‘साहब’, बिना ‘दस हजार’ लिए ‘हस्ताक्षर’ नहीं ‘करेगें’!

-लिपिक विशेष विवाह अधिकारी/सीआरओ सुमित श्रीवास्तव ने कहा कि विवाह प्रमाण-पत्र चाहिए तो 15 हजार देना पड़ेगा, नहीं देगें तो प्रमाण-पत्र नहीं मिलेगा, क्यों साहब बिना दस हजार लिए हस्ताक्षर नहीं करेगें

बस्ती। बार-बार कहा जा रहा है, कि डीएम के सिधाईपन का लाभ सबसे अधिक कलेक्टेट के अधिकारी और कर्मचारी उठा रहे है। रिकार्ड रुम में वकीलों से कोई मुआयना के नाम पर रेट से अधिक पैसा मांग रहा है, तो लिपिक विशेष विवाह अधिकारी/सीआरओ सुमित श्रीवास्तव विवाह प्रमाण-पत्र के लिए यह कहकर 15 हजार मांग रहें हैं, कि इसमें से दस हजार साहब को देना पड़ता है, और साहब बिना दस हजार लिए हस्ताक्षर नहीं करते है। इसी कलेक्टेट के भूलेख कार्यालय में बाबू पांच हजार रुपया घूस लेते हुए पकड़ा जा चुका है। सवाल उठ रहा है, कि अगर डीएम का कार्यालय ही भ्रष्टाचार में लिप्त रहेगा तो अन्य विभाग पर कैसे अंकुश लगेगा। डीएम के अधिकारियों को भी इस बात का ख्याल रखना होगा कि अगर डीएम सख्ती नहीं कर रहे तो इसका यह मतलब बिलकुल ही नहीं कि भ्रष्टाचार की गंगा बहा दें, अब जरा अंदाजा लगाइए कि एक गरीब जोड़ें को अगर विवाह प्रमाण-पत्र के लिए 15 हजार देना पड़ेगा तो वह कहां से लाएगा, वैसे भी अधिक जोड़े आर्थिक अभाव में कोर्ट में शादी करते हैं, इसी तरह का एक मामला रवि पांडेय नाम के दुल्हा का सामने आया। पैसे के अभाव में परिवार ने कोर्ट में शादी किया, लेकिन रवि को क्या मालूम था, कि विवाह प्रमाण-पत्र के लिए उसे 15 हजार देना पड़ेगा। इसकी शादी 30 मई को हुई, सत्यापन होकर सारे पेपर अधिकारी के पास पहुंच गया, जब रवि प्रमाण-पत्र लेने गया तो उससे विवाह बाबू सुमित श्रीवास्तव ने 15 हजार की मांग कर डाली। घर आकर जब उसमें माता-पिता और पत्नी से बताया तो सभी पैसे को लेकर परेशान हो गए, पैसे का इंतजाम न होने पर पत्नी की तबियत खराब हो गई, माताजी का बीपी बढ़ गया। मजबूर होकर रवि पांडेय ने इसकी शिकायत तहसील दिवस में करते हुए प्रमाण-पत्र दिलाने की मांग की। कहा कि अगर उसके पास इतना पैसा होता तो रीति रिवाज विधि से शादी करता। बताया कि विवाह प्रमाण-पत्र लगाना आवष्यक है। बार-बार बाबू से जाकर यही कहता हूं कि प्रमाण-पत्र दिलवा दीजिए, लेकिन बाबू एक ही बात कहता कि बिना 15 हजार दिए प्रमाण-पत्र नहीं मिलेगा, गरीबी देख बाबू कहने लगा कि चलो मान लो हम अपना हिस्सा नहीं लेंगे, लेकिन साहब बिना 10 हजार लिए हस्ताक्षर ही नहीं करेगें। प्रमाण-पत्र बिना यह गुजरात नौकरी पर नहीं जा रहा। अब आप समझ सकते हैं, कि साहब लोग कितना बेरहम होते जा रहे है। दो-तीन दिन पहले अधिवक्तागण डीएम कार्यालय गए और षिकायत करने लगें कि लेखपाल कहता है, कि हम लोगों को साहबों के किचेन को संभालना पड़ता है, घरेलू गैस और सब्जी तक लाना पड़ता है, अगर हम लोग घूस नहीं लेगें तो कैसे साहबों के घर का खर्चा चलाएगें।

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