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प्रधानजी जाइए पहले नेताजी से एनओसी लाइए, फिर मिलेगी स्वीकृति

प्रधानजी जाइए पहले नेताजी से एनओसी लाइए, फिर मिलेगी स्वीकृति

-सदर ब्लॉक में भी प्रधानों को लेनी पड़ती सचिवों के नेता से एनओसी, ब्लॉक को बीडीओ नहीं बल्कि सचिवों के नेता चला रहें, बिना नेता के बीडीओ प्रधानों के पत्रवाली पर हस्ताक्षर नहीं करते 


-यह नेता जी अपना साउंघाट ब्लॉक और गांव रोस्टर छोड़ सदर के बीडीओ के साथ दोपहर से इस बात की रणनीति बनाते हैं, कि किस क्षेत्र से और किन प्रधानों और सचिवों पर हाथ डालने से लक्ष्मी मिल सकती

-इन्हीं के जरिए ही प्रधान अपने गलत सही कार्यो का कराते हैं, मनरेगा के कच्चे और पक्के कार्यो की स्वीकृति के लिए प्रधान सबसे पहले ब्लॉक में स्थित इनके आवास पर जाते, वहां से एनओसी मिलने के बाद फाइल बीडीओ के पास आती

-नेताजी का तबादला तो दूसरे ब्लॉक में हो गया, लेकिन बीडीओ ने अभी तक आवास खाली कराने के लिए ना तो मौखिक और ना ही कोई नोटिस जारी किया

-यह नेताजी जिस भी ब्लॉक और ग्राम पंचायत में रहें हैं, इन पर भ्रष्टाचार का आरोप लगता, चूंकि ठहरे नेता तो इनके खिलॉफ ना तो जिला विकास अधिकारी, ना डीपीआरओ और ना बीडीओ ही कार्रवाई करते

-बीडीओ साहब के लिए नेताजी कमाउपुत साबित हो रहे हैं, तभी तो यह सचिव होते हुए भी एडीओ के आवास पर कब्जा किए

बस्ती। सदर ब्लॉक उन ब्लाकों में से एक हैं, जिन पर किसी का कोई भी नियंत्रण नहीं है। यह ब्लॉक लगता ही नहीं कि यहां पर बीडीओ और प्रमुख बैठतें है। इस ब्लॉक के सरकारी आवास पर जिसका मन चाहा, वही कब्जा कर लिया। अब आप इसी से अंदाजा लगा सकते हैं, कि बीडीओ के आवास पर जिला विकास अधिकारी का कब्जा हैं, एडीओ के आवास पर सचिवों के नेता का कब्जा है, सीडीओ के बाडी गार्ड को अनैतिक रुप से एलाट करके कब्जा करवा दिया गया। सरकारी आवास पर सचिवों ने कार्यालय तक खोल रखा है, जिसके चलते वहां की महिलाओं को घूमने फिरने और धूप में बाहर बैठने की आजादी तक छिन गई है। आप लोगों ने बहुत कम सुना होगा कि ब्लॉक का संचालन बीडीओ नहीं बल्कि सचिवों के नेता कर रहे हैं, भ्रष्ट नेताजी बीडीओ साहब के यह इतने चहेतें बन गएं हैं, कि अगर प्रधानों को कोई कार्य कराना होता हैं, कच्चे-पक्के कार्यो की स्वीकृति लेनी होती है, या फिर फर्जी भुगतान कराना होता है, तो सबसे पहले उसे नेताजी से एनओसी लेनी पड़ती है। प्रधानजी बीडीओ के पास तभी जाते हैं, जब नेताजी एनओसी जारी कर देते है। नेताजी अपना ब्लॉक साउंघाट और गावों के कलस्टर को छोड़ दोपहर बाद सीधे बीडीओ के पास आ जाते हैं, और उनके गोरखपुर जाने तक उन्हीं के पास बैठकर बखरा कमाने की रणनीति बनाते है। नेताजी के जरिए ही प्रधान अपने गलत सही कार्यो को कराते हैं, मनरेगा के कच्चे और पक्के कार्यो की स्वीकृति के लिए प्रधान सबसे पहले ब्लॉक में स्थित इनके आवास पर जाते, वहां से एनओसी मिलने के बाद फाइल लेकर बीडीओ के पास जाते, तब आंख बंद करके बीडीओ साहब उन पत्रवालियों पर हस्ताक्षर कर देते हैं, जिनमें नेताजी की एनओसी मिली होती। नेताजी के एनओसी मिलने भर की देरी रहती है, प्रधानजी का काम त्वरित हो जाता है। जाहिर सी बात एनओसी उन्हीं पत्रावलियों पर दी जाती होगी, जिसमें बखरा मिला होता है। वैसे बखरा के मामले में नेताजी बहुत बदनाम हो चुके है। यह जिस भी ब्लॉक के ग्राम पंचायतों में रहे इनपर बखरा लेने का आरोप लगता रहा। चूंकि ठहरें यह नेता इस लिए इनके खिलाफ ना तो इनके अधिकारी जिला विकास अधिकारी, ना डीपीआरओ और ना बीडीओ ही कोई कार्रवाई करते। भ्रष्टाचार के आरोपों में फंसने वाले प्रधानों और सचिवों को बचाने के लिए यह टेंडर तक लेते है। नेताजी बीडीओ के लिए इतने कमाउपूत साबित हो रहे हैं, कि अभी तक बीडीओ ने नेताजी को आवास खाली करने के लिए ना तो मौखिक कहा और ना नोटिस ही जारी किया। इसी से अंदाजा लगाया जा सकता हैं, कि यह बीडीओ साहब के लिए कितने फायदेमंद साबित हो रहे है। बीडीओ साहब को यह नहीं भूलना चाहिए कि वह क्लास टू के अधिकारी है। अगर क्लास टू का अधिकारी सचिव रैंक के कहने पर उठेगा, बैठेगा तो फिर क्लास टू अधिकारी की क्या इज्जत रह जाएगी? जब एक भिखारी अपने स्टेटस को मेनटेन कर सकता है, तो क्लास टू के अधिकारी क्यों नहीं कर सकते? बीडीओ साहब अपने आपको रमापति त्रिपाठी का रिष्तेदार बताकर रोब झाड़ते रहते है। कहते भी हैं, कि मेरे रिष्तेदार के रहते मेरा कोई कुछ नहीं कर पाएगा।

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