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प्रेस’ क्लब ‘चुनाव’ में जो ‘कभी’ नहीं हुआ वह ‘इस’ बार ‘हुआ’!

प्रेस’ क्लब ‘चुनाव’ में जो ‘कभी’ नहीं हुआ वह ‘इस’ बार ‘हुआ’!

-पहली बार टूटी मर्यादाएं, कई वरिष्ठ कहे जाने वाले पत्रकारों की खुली पोल, सालों पुराने संबध टूटे, पैसे लेकर बनाए गए पत्रकार, प्रलोभन देकर खरीदे गए वोट, धोखेबाजी और भीतरघात का रोना रोया गया, पैसे के लिए वोट को मैनेज करने वाले देखे गए, पहली बार पुनः मतगणना भी हुआ

-पहली बार पत्रकारों ने दिया अशिक्षित होने का परिचय, 70 अवैध वोट डाला, सबसे अधिक कार्यकारिणी में 13, संरक्षक, उपाध्यक्ष एवं सम्प्रेक्षक में नौ-नौ, अध्यक्ष एवं संगठन मंत्री में छह-छह, महामंत्री एवं कोषाध्यक्ष में सात-सात वोट

-आखिर उपाध्यक्ष पद के 15 और कार्यकारिणी सदस्य के 85 वोट गए कहां, क्यों दोनों पदों की गणना में इतना अंतर आया, उपाध्यक्ष पद के लिए जहां 284 वोट का आकड़ा आना चाहिए, वहां 269 का और कार्यकारिणी सदस्य में जहां 994 वोट होना चाहिए वहां इनवेलिड लेकर 909 वोट आ रहा, 85 वोटों का अंतर क्यों?

बस्ती। कौन जीता और कौन हारा, इस बात की चर्चा नहीं बल्कि इस बात की चर्चा हो रही है, कि इस बार के प्रेस क्लब चुनाव में जो कभी नहीं हुआ, वह इस बार क्यों हुआ? और कौन इसका जिम्मेदार? वोटों के आकड़ों में जो इतना बड़ा अंतर आया वह किसके कारण आया और क्यों आया? इस सवाल का जबाव आना ही चाहिए कि क्यों और कैसे उपाध्यक्ष जैसे महत्वपूर्ण पद की गणना में 15 और कार्यकारिणी सदस्य में 85 वोट का अंतर आया? इतना बड़ा अंतर इससे पहले के चुनाव में कभी नहीं आया, इस अंतर से कोई चुनाव जीत भी सकता था, तो कोई हार भी सकता था? चुनाव कमेटी को इस अंतर की समीक्षा करनी चाहिए, ताकि भविष्य के चुनाव में सवाल न खड़ा हो। सवाल इस लिए खड़ा हो रहा है, कि क्यों इन्हीं दोनों पदों में ही वोटों का बड़ा अंतर आया? और यह वोट गएं कहां? यह सबसे बड़ा सवाल हैं। चुनाव नतीजे के जो आकड़े मोहर के साथ उपलब्ध सामने आया उसके अनुसार उपाध्यक्ष पद के लिए दोनों प्रत्याशी को एक-एक वोट देना था, इस हिसाब से वोटों की संख्या 284 होनी चाहिए। आकड़ों के अनुसार अमित सिंह को 81, चंद्रप्रकाश शर्मा को 55, डा. वीके वर्मा को 93 एवं मो. अली तबरेज को 31 वोट मिले अगर इसमें नौ इनवैलिड वोट को शामिल कर लिया जाए तो वोटो की संख्या 284 होनी चाहिए, लेकिन 269 वोट ही आ रहा, तो फिर 15 वोट का अंतर आया कैसे? और यह 15 वोट गए कहां? इसी तरह 142 मतदाताओं को सात प्रत्याशी को एक-एक वोट करना था, इस तरह कुल 994 वोट होना चाहिए, अगर 13 इनवैलिड वोट को भी शमिल कर दिया जाए तो वोटों की संख्या 909 की आ रही है, जब कि कुल 994 वोट होना चाहिए, 85 वोट का अंतर क्यों आ रहा है? दोनों पदों के लिए किए गए मतदान में अगर इतना बड़ा अंतर आएगा तो सवाल खड़े होगें ही?

प्रेस क्लब के चुनाव में पहली बार इतनी बड़ी गुटबाजी देखी गई, किस तरह अपने गोल के लोगों को जीताने और दूसरे गोल के प्रत्याशियों को हराने के लिए जो डर्टी गेम पत्रकारों ने खेला उसे किसी भी सूरत हेल्थी नहीं कहा जा सकता। पत्रकारों में गुटबाजी का होना एक अशुभ संकेत माना जा रहा है। जिस तरह पहली बार मर्यादाओं को टूटते देखा गया, और कई वरिष्ठ कहे जाने वाले पत्रकारों की पोल सार्वजनिक रुप से खोली गई, उससे पत्रकारिता और प्रेस क्लब की गरिमा को ठेस पहुंचा। सालों पुराने संबध टूटते देखे गए, पैसा लेकर पत्रकार बनाने वालों का भी गंदा चेहरा सामने आया। पैसे के लिए वोट को मैनेज करने वाले देखे गए, प्रलोभन देकर जिस तरह वोट खरीदे गए और धोखेबाजी, भीतरघात एवं विष्वातघात का रोना प्रत्याशियों ने रोया, वह काफी हैरान करने वाला रहा। 142 मतदाओं में अगर धोखेबाजी, भीतरघात एवं विष्वातघात का समावेश होता है, तो यह जिलेभर के पत्रकारों के लिए चिंता का विषय होना चाहिए। इस चुनाव में पहली बार पत्रकारों ने एक तरह से कथित अशिक्षित होने का परिचय दिया 70 अवैध वोट डालकर पत्रकारों ने यह साबित कर दिया कि इनमें और ग्रामीण मतदाताओं में कोई फर्क नहीं है। कहा भी जाता कि जब पैसा लेकर पत्रकार बनाए जाएगें तो इनवैलिड वोट होगा ही। जानकार हैरानी होगी कि सभी पदों पर इनवैलिड वोट सामने आया, सबसे अधिक कार्यकारिणी में 13, संरक्षक, उपाध्यक्ष एवं सम्प्रेक्षक में नौ-नौ, अध्यक्ष एवं संगठन मंत्री में छह-छह, महामंत्री और कोषाध्यक्ष में सात-सात वोट अवैध पाए गए। जहां पर एक वोट से हारजीत हुई, वहां अगर 70 इनवैलिड वोट होगें तो रणनीति फेल होना लाजिमी है। अध्यक्ष पद के लिए अगर सुदृष्टिनरायन तिवारी को छह वोट मिलता है, जिसे कभी सिर्फ खुद का वोट मिला हो तो इससे पत्रकारों का अध्यक्ष के प्रति नाराजगी का पता चला, पहली बार चुनाव लड़ने वाले सलामुद्वीन कुरैशी को अगर बिना प्रचार के तीन वोट मिलता है, भी वर्तमान अध्यक्ष के लिए चिंता का विषय होना चाहिए। जीत का आकड़ा अगर कम होता है, तो यह मान लेना चाहिए, पत्रकार अंसतुष्ट है। अध्यक्ष विनोद कुमार उपाध्याय, उपाध्यक्ष पद के लिए अमित कुमार सिंह, संगठन मंत्री के लिए सर्वेश कुमार श्रीवास्तव, कोषाध्यक्ष राकेश चंद्र श्रीवास्तव उर्फ बिन्नू और सम्प्रेक्षक पद के लिए बषिष्ठ कुमार पांडेय एवं स्ंारक्षक के प्रकाश चंद्र गुप्त अगर लगातार चैथी बार जीतते आ रहें हैं, तो इसका मतलब ऐसे लोगों पर पत्रकारों का भरोसा कायम है। वरना यूंही कोई चार-चार बार लगातार नहीं जीतता।

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