Breaking News
  1. No breaking news available
news-details
ताज़ा खबर

पुरानी गलतियों को सुधारने का समय,

पुरानी गलतियों को सुधारने का समय,          सुप्रीम कोर्ट में 1991 के पूजा स्थल कानून को लेकर लगभग एक दर्जन याचिकाएं लंबित हैं, जिसमें 15 अगस्त, 1947 के बाद सभी धार्मिक स्थलों को यथास्थिति में बरकरार रखने की बात कही गई है। कुछ याचिकाओं में मांग है कि इस कानून को रद किया जाए, क्योंकि जहां मंदिर के साक्ष्य मिल रहे हैं, उसे कैसे अनदेखा किया जा सकता है।

ऐतिहासिक गलतियों को सुधारना जीवंत संस्कृति का नियम है। वहीं कई मुस्लिम पक्षों की मांग है कि 1991 के कानून का सख्ती से पालन हो। राजनीतिक दल भी बंटे हुए हैं। इसी बीच राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक मोहन भागवत की एक टिप्पणी बहुत वायरल हो गई। परोक्ष रूप से संभल की घटना पर ही टिप्पणी करते हुए उन्होंने कहा कि इस तरह हर मस्जिद के नीचे मंदिर ढूंढ़ने की कोशिश नहीं होनी चाहिए।

उन्होंने इसे कुछ लोगों के व्यक्तिगत लाभ से जोड़ा। उन्होंने पहले भी कहा था कि अगर हर जगह जमीन की खोदाई होने लगी तो हर जगह शिवाला निकलेगा। भारतीय सांस्कृतिक इतिहास को देखते हुए इससे इन्कार भी नहीं किया जा सकता है, क्योंकि यहां तो हजारों वर्षों से हर घर में पूजा स्थल की परंपरा रही है।

उनकी टिप्पणी पर संत समाज ही भड़क गया। कहा गया कि भागवत हिंदुओं के अनुशासक नहीं हैं और जगद्गुरु रामभद्राचार्य ने इसे तुष्टीकरण बताया। कुछ नेता इस प्रकरण में अपनी राजनीतिक जमीन तलाशने में लग गए। अंदाजा लगाया जा सकता है कि मंदिर-मस्जिद का मुद्दा कितना संवेदनशील है।

इसलिए जरूरी है कि इस समस्या का हल निकले। इस मुद्दे से नजर बचाकर निकल जाना किसी के हित में नहीं है। सुप्रीम कोर्ट में यह मामला पिछले तीन चार साल से लंबित है, जो स्पष्ट करता है कि वहां भी यह प्राथमिकता की श्रेणी में तो नहीं है। देश जब आर्थिक तरक्की के बड़े सपने बुन रहा है तो जरूरी है कि ऐसे मुद्दों से एकजुट होकर निपटें।

इसमें राजनीतिक दलों की भी एकजुटता चाहिए और धार्मिक गुरुओं की भी। कोर्ट भी तभी सही और प्रभावशाली फैसला सुना पाएगा जब सिर्फ कानूनी औपचारिकताओं से बाहर आए। वक्फ कानून में संशोधन को लेकर राजनीतिक दलों में क्या और क्यों बेचैनी है, यह किसी से छिपा नहीं है।

कांग्रेस, सपा, तृणमूल समेत कई विपक्षी दल अडिग हैं कि इसमें संशोधन न होने पाए, लेकिन वही दल यह नहीं बता पाते कि यदि 1991 के एक्ट में धार्मिक स्थलों के लिए कटआफ डेट है तो वक्फ के लिए क्यों न हो। तमिलनाडु के एक मंदिर की जमीन पर भी वक्फ बोर्ड दावा करता है कि 15वीं सदी में अर्काट के नवाब ने वह गांव वक्फ को दे दिया था।

ऐसे दर्जनों उदाहरण हैं। किसी राज्य की वर्तमान विधानसभा की पूरी जमीन पर वक्फ का दावा है तो कहीं स्टेशन, कहीं नगरपालिका पर। कुछ ऐसे भी उदाहरण हैं जहां पूरे गांव पर वक्फ का दावा है और इसलिए ग्रामीण अपनी जमीन बेच नहीं पा रहे। विपक्षी राजनीतिक दल संसद में उनकी लड़ाई लड़ रहे हैं और इसे वाजिब ठहरा रहे हैं।

सरकार की ओर से जो नया संशोधन पेश किया गया है कि उसमें साक्ष्य देने की बात कही गई है, लेकिन वह इमामों को स्वीकार्य नहीं। इसका अंत करना ही होगा। देश में सद्भावना के लिए हर किसी को जवाबदेही उठानी ही पड़ेगी। ऐतिहासिक गलतियों को सुधारने का अर्थ गलतियों को न दोहराना है, इतिहास बदलना नहीं।

आज हर किसी को संवेदनशील होना ही पड़ेगा। जगद्गुरु रामभद्राचार्य की ओर से हर उस मंदिर की पुनर्स्थापना की कामना, जो कभी न कभी तोड़ा गया था, वह कइयों के हृदय के नजदीक है। जिस सहअस्तित्व की बात भागवत कह रहे हैं वह भी करोड़ों भारतीयों के लिए वांछनीय है, लेकिन यह किसी कोर्ट या हिंदू समाज भर से नहीं हो सकता है। यह 140 करोड़ भारतीयों की कोशिश का फल होगा।

इसके लिए हर पक्ष को उदार होना पड़ेगा और ईमानदार भी। संत समाज को उदार होना पड़ेगा तो इमामों और उनकी पैरवी कर रहे राजनीतिक दल के नेताओं को भी ईमानदारी से यह स्वीकार करना होगा कि इतिहास में धर्म के साथ कुछ ज्यादतियां हुईं और उनके लिए भी बाबर और औरंगजेब उतने ही बड़े आततायी हैं जितने हिंदू समाज के लिए।

भारत एक नई छलांग की तैयारी कर रहा है। अंतरराष्ट्रीय एजेंसियों की रिपोर्ट में इसकी झलक दिख रही है। यह छलांग किसी एक समुदाय और धर्म के लोगों के लिए नहीं है। अगर विकास की गति धीमी पड़ी तो भी इसमें देर होगी। गति अवरोधक सिर्फ शासकीय-प्रशासकीय शिथिलता ही नहीं होती है। सामाजिक विवादों का भी घातक असर होता है।

खासतौर पर तब जबकि कुछ पड़ोसी घात लगाए बैठे हों। पिछले दिनों में कुछ राजनीतिक दलों का व्यवहार बहुत अचंभित करने वाला रहा है। कुछ बड़े नेताओं की ओर से ऐसे बयान दिए गए हैं कि उनकी शर्त न मानी गई तो सड़कों पर आग लग जाएगी। लोकसभा चुनाव के वक्त से यह देखा जा रहा है। माना जा रहा है कि खुफिया एजेंसियों ने कुछ ऐसी रिपोर्ट दी हैं जिसमें सामाजिक तनाव के बहाने अस्थिरता पैदा करने की कोशिश हो सकती है।

एक वक्त था जब तथाकथित गोभक्तों को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने नसीहत दी थी। अब भागवत ने मंदिर-मस्जिद के विवाद को तूल देने वालों को नसीहत दी है। होना यह चाहिए कि मुस्लिम धर्मगुरुओं की ओर से भी इमामों और मुस्लिम वोट बैंक के सहारे राजनीति करने वाले नेताओं को सख्त नसीहत दी जाए कि तार्किक और सहिष्णु होना आज की जरूरत ही नहीं, बल्कि आवश्यक शर्त है।

आशुतोष झा।

(लेखक दैनिक जागरण के राजनीतिक संपादक हैं)

You can share this post!

कुछ दिन पहले सोशल मीडिया पर सीओ अनुज चौधरी का एक वीडियो वायरल हुआ था,

छोटे कद वाले बड़े साहित्यकार,

Tejyug News LIVE

Tejyug News LIVE

By admin

No bio available.

0 Comment

Leave Comments