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पालिका के दो कान्हा गौशाला में 62 फीसद कमीशन का हुआ खेल!

पालिका के दो कान्हा गौशाला में 62 फीसद कमीशन का हुआ खेल!

-काम हुआ एक करोड़ से कम का, भुगतान हुआ एक करोड़ 62 लाख, कमीशन के चलते पांच सौ गोवंश के स्थान पर मात्र 100 के रहने का बना दिया गौशाल


-कोईलपुरा में मात्र एक करोड़ 20 लाख की लागत में पांच सौ गोवंश रह रहे

-लगभग तीन साल होने को हैं, लेकिन आज तक संजय कालोनी पांडेय बाजार का कान्हां गौशाला हैंडओवर तक नहीं हुआ, इसी तरह 2.50 करोड़ की लागत से बना पालिका का कान्हा गौषाला भी सात में हैंडओवर नहीं हुआ

-गोबर गेैस प्लंाट तो हैं, लेकिन निष्क्रिय, चलाकर दिखाने को कहा, चला ही नहीं

-गोबर स्टोर करने के लिए कोई व्यवस्था नहीं किया, बरसात के दिनों में गोबर बहकर आसपास के घरों में जाता, जिसे लेकर धरना-प्रदर्शन तक हो चुका


-20 फीट उंची और 14 इंच की मोटी चाहरदीवारी का लगभग 25 लाख का ईंट कहां गया, पता ही नहीं चला

-बिजली का कनेक्षन तक नहीं लिया गया, भूसा पर्याप्त मात्रा में रहा, गोवंषों को हरा चारा खिलाने के लिए गौशाला का देखभाल करने वाले दिग्विजय मिश्र अपने गांव से लाते

-गोसेवा के प्रदेश उपाध्यक्ष महेश शुक्ल ने कार्रवाई कराने कर बात कहीं, वहीं प्रभारी ईओ/एसडीएम सुनिष्ठा सिंह ने कहा मामला संज्ञान में हैं, कार्रवाई हो रही


बस्ती। पालिका के भ्रष्टाचारियों को अगर किसी से वाकई प्रेम हैं, या रहा है, तो वह सिर्फ लगाव नहीं, है, तो सिर्फ पैसे से। तभी तो दो कांन्हा गौशाला डीपीआर के विपरीत निर्माण कर 60 फीसद तक कमीशन का खुल हुआ। अगर नहीं हुआ होता तो 500 और एक हजार के स्थान पर सौ और दो सौ गोवंश ही नहीं रहते। अगर डीपीआर के अनुरुप हुआ होता तो सात साल और लगभग तीन साल पहले ही हैंडओवर हो गया होता। हैंडओवर इस लिए नहीं हुआ क्यों कि कमीशनबाजी ने निर्माण को ही गुणवत्ताविहीन कर दिया। इन्हें तो योगीबाबा के डीम प्रोजेक्ट कान्हा गौशाला से भी कोई प्रेम या लगाव नहीं रहा। कम से कम बस्ती में तो ऐसा ही दिख रहा है। पालिका की ओर से दो बड़े कान्हां गौशाला बनाए गए, इनमें 2018 में दो करोड़ 50 लाख की लागत से पालिका परिसर में बना। डीपीआर के अनुसार एक हजार गोवंश को रखने के लिए टेंडर हुआ, हालत यह है, कि दो सौ गोवंश भी नहीं रह पा रहे है। यहा पर भी लगभग एक करोड़ का बंदरबांद हुआ। हैरान करने वाली जानकारी यह है, कि मानकविहीन होने के कारण यह गौशाला सात साल बाद भी ठेकेदार ने पालिका को हैंडओवर नहीं किया, फिर भी बिना हैंडओवर के गौशाला इतने सालों से संचालित हो रहा, अब तो ठेकेदार का पांच साल वाला अनुबंध भी समाप्त हो गया, यह देश का पहला ऐसा कान्हा गौशाला होगा, जिसका अनुबंध समाप्त हुए दो साल से अधिक हुआ, लेकिन हैेंडओवर नहीं हुआ। इस कान्हां गौशाला में जबरदस्त कमीशनबाजी हुआ। किसी को योगीजी का डर नहीं था। फोटो तो सभी योगीजी के साथ खिचांकर चले आते हैं, और उसे वायरल करना भी नहीं भूलते, लेकिन उनके डीम प्रोजेक्ट को चूना लगाना भी नहीं भूलते।

इसी तरह पांडेय बाजार स्थित रामजी दाल मिल के पास संजय कालोनी के पास एक करोड़ 62 लाख की लागत से कांजी हाउस का जीर्णोधार कर कांन्हा गौषाला का निर्माण लगभग तीन साल पहले हुआ। डीपीआर और उपलब्ध बजट के अनुसार इस कांन्हा गौषाला में पांच सौ गोवंष रहना चाहिए। रिपोर्टर ने जब पड़ताल किया तो केयर टेकर दिग्विजय मिश्र ने बताया कि इसमें 100 गोवंश रह सकते हैं, और वर्तमान में 100 को संरक्षित किया गया। गोबर गैस प्लांट तो बना है, लेकिन वह निष्क्रिय है, जब इसे चलाकर दिखाने को कहा गया तो काफी प्रयास के बाद भी नहीं चला। गोबर को स्टोर करने तक की व्यवस्था नहीं है, बरसात के दिनों में गोबर का कचरा आसपास के घरों में नाली के जरिए घुस जाता है, जिसके लिए धरना-प्रदर्शन तक हो चुका है। बिजली का कनेक्षन तक लिया गया। कांन्हा गौशाला कुल कितने लागत का बना कौन ठेकेदार ने बनाया हैं, पता ही नहीं चला, क्यों कि उदघाटन का बोर्ड ही नहीं लगा। बताया जाता है, गोरखपुर के कोई पदमाकर ़ित्रपाठी नामक ठेकेदार को ठेका मिला था। गुणवत्ताविहीन बनाया गया, जगह-जगह गुणवत्ताविहीन कार्य दिखाई भी देता है। गोवंशा को हरा चारा खिलाने के लिए केयर टेकर को अपने गांव से लाना पड़ता है। सबसे बड़ा सवाल यह है, कि बिना हैंडओवर के कैसे कांन्हा गौशाला संचालित हो रहा है? और जिम्मेदार क्यों इसे संचालित होने दे रहे हैं? सबसे खास बात हैं, यह है, कि 50 साल पुराने कांजी हाउस का दिवार 20 फीट उंचा था, और उसकी मोटाई नौ इंच नहीं बल्कि 14 इंच थी। आसपास के लोगों का कहना है, कि कम से कम 20-25 लाख का पुरार्ना इंट कहां गया, किसी को पता ही नहीं चला। जिस जिले मेें गोसेवा के प्रदेश उपाध्यक्ष हो अगर उस जिले के कांन्हा गौशाला में इस तरह की लूटपाट हुई है, तो यह चिंता का विषय है। हालांकि उपाध्यक्ष महेश शुक्ल और प्रभारी ईओ/एसडीएम सुनिष्ठा सिंह ने कार्रवाई कराने की बात कही है। देखना है, कि दोषियों के खिलाफ कितनी और क्या कार्रवाई होती है? बताया जाता है, कि पालिका ने आज से लगभग 40-50 साल पहले कांजी हाउस बनाने के लिए ग्राम सभा से जमीन लिया था। वैसे सड़क के किनारे इस बेसकीमती जमीन पर दो नेताबों की नजर पहले से थी, कोई इसमें माल बनवा चाह रहा था, तो कोई कब्जा करना चाह रहा है। कब्जा करने वाले का नाम मीडिया में खूब उछला भी था।

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