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नकली दवाओं के साथ डा. गौड़ ने ‘कैरी बैग’ भी बेचा, करोड़ों कमाया!

नकली दवाओं के साथ डा. गौड़ ने ‘कैरी बैग’ भी बेचा, करोड़ों कमाया!

-दुनिया के पहले ऐसे बच्चों के डाक्टर होगें जो एमआरपी पर दवा देते हैं, और कैरी बैग का अलग से तीन-पांच रुपया लेते, जिन दवाओं पर 30 फीसद छूट मिलता, वह भी कैरी बैग का पैसा नहीं

-जिन गरीबों की सेवा करने को यह लोग कसम खाते, उन्हीं गरीबों का सबसे पहले खून चूसते

-आखिर एक डाक्टर परिवार को कितनी दौलत चाहिए, कि वह गरीबों का खून चूसना बंद कर दें

-क्यों नहीं कम खाओ और चैन की नींद सोओ का फारमूला अपनाते? क्यों महल पर महल खड़ा करने के लिए मरीजों को लूटते?

-इज्जत, नाम और शोहरत कमाने के बजाए क्यों दौलत कमाने के लिए नकली दवाओं का कारोबार करने वालों को बढ़ावा देते, और अधिक कमीशन के चक्कर में मरीजों को नकली दवा देते?

-भगवान बनने के बजाए अधिकांश डाक्टर बन जाते मौत के सौदागर, एक अच्छा डाक्टर तो नहीं बन पाते, अलबत्ता कामयाब कारोबारी अवष्य बन जाते

बस्ती। यूंही नहीं बच्चों के डाक्टर एसके गौड़ ने कम समय में 100 करोड़ कमाया। दुनिया के यह पहले ऐसे बच्चों के डाक्टर होगें जो एमआरपी पर तो दवा बेचते ही हैं, उपर से कैरी बैग का दाम भी मरीजों से अलग से लेते, एक-एक कैरी बैग की कीमत तीन-पांच रुपया लेते है। क्लीनिक के भीतर जो इनका प्रियांशु मेडिकल स्टोर हैं, वहां पर कैरी बैग के साथ दवा लेने अनिवार्य है। अनिवार्य इस लिए है, ताकि कैरी बैग बेचकर माल कमाया जा सके। जिस मरीज से कैरी बैग का तीन रुपया लिया गया, उसका नाम विनायक उर्फ सुमित मोदी है। कंप्यूटराइज्ड बिल पर डा. एसके गौड़ का नाम लिखा हुआ है। जिन दवाओं पर 30 फीसद छूट मिलता, वह भी कैरी बैग का पैसा नहीं लेते। लेकिन डाक्टर गौड़ केरी बैग का पैसा लेते है। इसी लिए ऐसे डाक्टर को मरीज खून चुसवा कहते है। जिन गरीबों की सेवा करने को यह लोग कसम खाते, उन्हीं गरीबों का सबसे पहले खून चूसते। आम नागरिक पूछ रहा है, कि आखिर एक डाक्टर परिवार को कितनी दौलत चाहिए, कि वह गरीबों का खून चूसना बंद कर दें। क्यों नहीं कम खाओ और चैन की नींद सोओ का फारमूला अपनाते? क्यों महल पर महल खड़ा करने के लिए मरीजों को लूटते, और उनकी जान तक ले लेते? इज्जत, नाम और शोहरत कमाने के बजाए क्यों यह लोग दौलत कमाने के लिए नकली दवाओं का कारोबार करने वालों को बढ़ावा देते, और अधिक कमीशन के चक्कर में मरीजों को नकली दवा देते? भगवान बनने के बजाए अधिकांश डाक्टर क्यों मौत का सौदागर बन जाते, एक सफल डाक्टर तो यह नहीं बन पाते, अलबत्ता कामयाब कारोबारी अवष्य बन जाते। अगर यह लोग एक अच्छा डाक्टर बनते तो 75 फीसद मरीजों की जान बच सकती। ऐसा लगता है, कि मानो मरीजों का खून चूसना अधिकांश डाक्टरों का पेशा बन गया। तभी तो यह लोग कम समय में अकूत संपत्ति के मालिक बन जाते है। ऐसे न जाने कितने नामी डाक्टर हैं, जिनकी ओपीडी इतनी अच्छी हैं, कि उन्हें नकली दवा बेचने की आवष्कता ही नहीं। जब भी किसी नर्सिगं होम में कोई कैजुअल्टी होती है, उसका सबसे अधिक फायदा पुलिस, सीएमओ कार्यालय और कुछ मीडिया वाले उठाते है। ऐसे मौके पर हर कोई डाक्टर को इस लिए चूसना चाहता है, क्यों कि इन लोगों ने मरीज के खून को चूसा। 10-20 लाख खर्चा करके फिर यह लूटपाट करने में लग जाते हैं, इन्हें इस बात का जरा भी एहसास नहीं होता कि इनकी लापरवाही से किसी के घर का चिराग बुझ गया। बतातें हैं, कि चार-पांच साल पहले इन्हें लोग खून चुसवा डाक्टर के नाम से नहीं बुलाते थे। सोशल मीडिया पर इन्हें लोग बहुत बड़ा चोर और डकेैत तक की संज्ञा दे रहे हैं, और कहते हैं, कि इनके भीतर जरा सा भी मानवता नहीं है। यह जिले का सबसे घटिया और सबसे मंहगा डाक्टर है। पहले यह डाक्टर था, लेकिन अब लुटेरा बन गया। यह डाक्टर और कातिल दोनों है। मरीजों के फाइल के नाम पर दो सौ रुपया लेते। कुछ लोग कहते हैं, कि आज जितने लोग डा. गौड़ का विरोध कर रहे हैं, अगर यह लोग सरकारी डाक्टरों का करते तो किसी मरीज को प्राइवेट अस्पताल में जाने की जरुरत ही न पड़े। एक साहब लिखते हैं, कि एकाध को छोड़कर कितने ऐसे डाक्टर हैं, जो गरीबों और मजबूरों की मदद कर रहे है। सभी तो तिजोरी भरने में लगे हुए है। जिले के अधिकतर चिकित्सक प्रापर्टी डीलिगं के धंधे में लगा हुआ है। अपनी काली कमाई को यह लोग अपने साले, साली, जीजा, सास और ससुर के नाम पर करोड़ों की जमीन खरीदते है। जिन जमीनों पर इनके द्वारा पैसा लगाया गया, उसके बारे में बताया जाता है, कि गदहाखोर के पास 50-60 बिस्वा, कैेली के पास 25-30 विस्वा, रामपुर मेडिकल के पास 15-20 बिस्वा जमीन होने का खुलासा हो रहा है। यह खुलासा और कोई नहीं बल्कि इनके यहां काम करने वाले इनके एक हमराज ने किया। शहर के एक बहुत नामी डाक्टर हैं, इन्हें शहर के एक नामी होटल वाले ने कमीशन के लालच में फुटैया के पास लगभग 50 बीघा जमीन खरीदवा दिया, आज तक यह जमीन पर कब्जा नहीं कर पाए, जब भी कब्जा करने जाते हैं, तो महरीपुर के बाबू साहब लोग लाडी-डंडा लेकर खड़े हो जातें है। आज इस जमीन की कीमत 25 करोड़ से कम की नहीं है।

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