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नकली प्रमुख चले थे पत्रकार को पीटने, दलितों ने इन्हें ही पीट दिया!

नकली प्रमुख चले थे पत्रकार को पीटने, दलितों ने इन्हें ही पीट दिया!


-पहली बार किसी नेता की धुनाई उपेक्षित समझे जाने वाले दलितों ने की

-कोई सांसद कार्यालय जाकर पत्रकार को धमकाता, तो कोई विधायक पत्रकार को जिंदगी भर जेल में सड़ा देने की धमकी देता, तो कोई प्रमुख मारने की धमकी देता, लेकिन एक की भी मंशा पूरी नहीं होती

-भ्रष्ट नेताओं के पास पावर और मनी तो हो सकता है, लेकिन उनके पास आनेस्टी और विल पावर नहीं होता, क्यों कि यह लोग ईमानदार नहीं होते

-जिस दिन नेता ईमानदार हो जाएगें दस दिन किसी पत्रकार की हिम्मत नहीं पड़ेगी नेताजी के खिलाफ अनाप शनाप लिखने की

-नेताओं की इज्जत उस समय नहीं जाती, जब वह खुले आम भ्रष्टाचार करते, उस समय सारी इज्जत चली जाती है, जब मीडिया उन्हें नंगा करती

बस्ती। न जाने क्यों अधिकांश नेता पत्रकारों को ही निशाना क्यों बनाते है? जबकि पत्रकार नेताजी की कोई कीमती चीज न तो चुराता है, और न उनके परिवार की इज्जत पर हाथ ही डालता। निषाना बनाने वाले वही लोग होते हैं, जो सरकारी धन को नीजि समझकर इस्तेमाल करते है। अगर कोई पत्रकार इनके कालेकारनामें का पर्दाफाश करने का प्रयास करता हैं, तो पहले यह उसे भ्रष्ट करने का प्रयास करते हैं, जब उसमें कामयाबी नहीं मिल पाती तो उसके पीछे पड़ जाते है। कोई सांसद कार्यालय जाकर पत्रकार को धमकाता, तो कोई विधायक पत्रकार को जिंदगी भर जेल में सड़ा देने की धमकी देता, तो कोई नकली/असली प्रमुख मारने की धमकी देता, लेकिन एक की भी मंशा पूरी नहीं होती। खासबात यह हैं, कि जो लोग जिन पत्रकारों को मारने की धमकी देते हैं, वही लोग एक दिन उसी पत्रकार से खबर लिखने की विनती करते है। भ्रष्ट नेताओं के पास पावर और मनी तो हो सकता है, लेकिन उनके पास पत्रकारों जैसी आनेस्टी और विल पावर नहीं हो सकता, क्यों कि यह लोग ईमानदार नहीं होते। जिस दिन यह लोग ईमानदार हो जाएगें उस दिन किसी पत्रकार की हिम्मत नहीं पड़ेगी इनके खिलाफ अनाप शनाप लिख सके। नेताओं की इज्जत उस समय नहीं जाती, जब वह खुले आम भ्रष्टाचार करते, लेकिन इनकी इज्जत उस समय अवष्य चली जाती है, जब मीडिया इन्हें नंगा करती। यह लोग अपने गोरखधंधे को नहीं बंद कर सकते हैं, चाहते हैं, कि पत्रकार लिखना पढ़ना बंद अवष्य कर दे। अब इन्हें कौन समझाने जाए कि अगर पत्रकार लिखेगा पढ़ेगा नहीं तो करेगा क्या? नेता के साथ में रहकर दलाली तो करेगा नहीं, और न वह वाहवाह करने वालों की टोली में ही शामिल होगा। दिक्कत यह है, कि आज का नेता पावर और मनी के नशे में इतना चूर रहता हैं, कि वह अपने आप को विधाता समझ बैठता है। कहा भी जाता हैं, कि वही नेता जनता और मीडिया के बीच लोकप्रिय हुआ, जिसने अपने को जनता का सेवक समझा। अपने आप को सेवक समझने वाला कभी मीडिया को न तो बर्बाद करने की बात करता और न मारने की धमकी ही देता है, और न उसे अखबार से निकलवाता है। धमकी देना अखबार से निकलवा देना बुजदिल और डरपोक नेताओं का काम है। नेताओं को यह कभी नहीं भूलना चाहिए, कि पत्रकार और उसका परिवार भी वोटर होता है। यह भी नहीं भूलना चाहिए, कि पत्रकारों की घुसपैठ मतदाताओं कि बीच सबसे अधिक रहती है। अगर किसी पत्रकार ने अपने प्रभाव का इस्तेमाल करके किसी नेता का एक हजार या 15 सौ वोट भी काट दिया तो वह वोट हारजीत का कारण बनता, ऐसा सदर विधानसभा के चुनाव में हो चुका है। नेताओं का पत्रकारों से पंगा लेना हमेशा नुकसानदायक रहा। जितना फायदा पत्रकारों को दोस्त बनाकर मिलेगा, उतना दुष्मन बनाकर नहीं। हाल ही में एक नकली प्रमुख के भ्रष्टाचार की खबर प्रकाशित हुई, नेताजी इतने तिलमिला गए, कि वह पत्रकारों को ही मारने की योजना बनाने लगे, इसका खुलासा जब उन्होंने अपने मित्र मंडली में किया, तो उन्हें ऐसा न करने की सलाह दी गई। नकली प्रमुख की इच्छा तो पूरी नहीं हुई, लेकिन एक जमीन के कब्जे के मामले में नेताजी दलितों का निशाना अचष्य बन गए। दलितों ने खूब धुना। धीरे-धीरे यह बात न्याय मार्ग पर पहुंची, अब आप समझ ही सकते है, जो बात न्याय मार्ग तक पहुंच गई, समझो पूरी दुनिया तक पहुंच गया। बहरहाल, नेताजी ने एफआईआर तक नहीं दर्ज करवाया। इसी लिए बडे़ बुजुर्ग कह गए कि जो लोग दूसरे लिए कुंआ खोदते हैं, भगवान उनके लिए खाई तैयार करके रखता है।

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