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क्या निर्वाचित महिला जनप्रतिनिधियों का बैठक में भाग लेना वर्जित रहा?
-जिला विकास समन्यव एवं निगरानी समिति यानि दिशा की बैठक में एक भी निर्वाचित महिला प्रमुख और नगर पंचायत एवं पालिका की अध्यक्ष नहीं रही
-इनके स्थान पर या तो पति या फिर गैर निर्वाचित प्रतिनिधियों ने बैठक की षोभा बढ़ाया
बस्ती। जिले की सबसे बड़ी सदन से अगर निर्वाचित महिला जनप्रतिनिधियों की भागीदारी नहीं रहेगी तो सवाल तो उठेगा ही। सवाल यह भी उठ रहा है, कि दिशा की बैठक से महिला प्रमुख और नगर पंचायत एवं नगरपालिका अध्यक्ष क्यों गायब रही? क्या इनके पति या फिर गैर निर्वाचित जनप्रतिनिधि यह नहीं जाते कि निर्वाचित महिला जनप्रतिनिधि आगे आए। ऐसे लोगों की मानसिकता के कारण ही भ्रष्टाचार तो बढ़ ही रहा हैं, साथ ही महिलाओं का हक भी मारा जा रहा हैं, और हक मारने वालों में उनके पति भी षामिल है। निर्वाचित महिला जनप्रतिनिधि के रुप में एक मात्र कुदरहा ब्लॉक के ग्राम पंचायत डेहल्वा की प्रधान गीता वर्मा मौजूद रही। जब कि सात महिला प्रमुख और एक नगर पंचायत और एक नगर पालिका अध्यक्ष और लगभग 600 निर्वाचित महिला प्रधान हैं। बार-बार मीडिया निर्वार्चित महिला जनप्रतिनिधियों को उनका अधिकार देने की अपील उनके पतियांें, देवरों और भाईयों सहित उन गैर निर्वाचित जो अपने आपको प्रतिनिधि कहते हैं, से कर रही हैं, लेकिन यह लोग सुनने को तैयार नहीं है। कुर्सी और धन के लालच में यह लोग इतना अंधा हो चुके हैं, कि इन्हें इस बात तक एहसास नहीं कि इन्हें जनता क्या कहती और क्या कह कर बुलाती है। पता नहीं यह लोग अपने नाम से जाने जाएगें, पता नहीं कब तक यह लोग अपनी पत्नियों के नाम से जाने जाएगें। सवाल उठ रहा है, कि महिलाओं का हक मारने वाले क्या भविष्य में कभी अपनी अलग पहचान बना पाएगे? भले ही मीडिया के सुझाव को यह लोग गलत मानते हो लेकिन सच तो सच ही होता। सच तो यह हैं, कि महिला पति या फिर प्रमुख, प्रधान, नगरपालिका, नगर पंचायत प्रतिनिधियों को कभी वह हक नहीं मिल सकता, जिस पर वह अपना हक जता रहे है। नकली कभी असली नहीं हो सकता और असली कभी नकली नहीं हो सकता। यही बात उन लोगों को समझनी हैं, जो नकली बनकर सरकारी धन को लूट रहे है। अगर जिले की सबसे बड़ी सदन से निर्वाचित महिला जनप्रतिनिधि ही प्रतिभाग नहीं करेंगी या फिर उन्हें प्रतिभाग नहीं करने दिया जाएगा तो नारी शक्ति मिशन का क्या होगा। महिलाओं के हकों पर डांका डालने वाले याद रखिए जनता ने उन्हें इस लिए नहीं चुना कि वह चौका बर्तन और बाल बच्चों को पालने में फंसी रहे।
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