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क्या ‘गरीब’ और ‘किसान’ कभी ‘राजनीतिक’ शिकंजे से ‘मुक्त’ हो ‘पाएगें’?
बस्ती। भ्रष्टाचार और भ्रष्टाचारियों के नीदों को हराम करने वाले भाकियू भानु गुट के मंडल प्रवक्ता चंद्रेश प्रताप सिंह का कहना और मानना है, कि अगर गरीब और किसानों को राजनीतिक शिकंजे से मुक्त होना है, तो उन्हें अपनी ताकत पहचाननी होगी। गरीबों और किसानों को आगे आना होगा। इन्हें अपने अधिकारों के लिए लड़ना होगा, इनकी लड़ाई कोई और नहीं लड़ेगा, इन्हें अपने हितों की रक्षा भी करनी होगी। तभी वे राजनीतिक शिकंजे से मुक्त हो पाएगें। कहते हैं, कि क्या कभी किसी ने शेर की बलि होते देखा है? देश में बलि हमेशा बकरे की होती है शेर की कभी नहीं होती। वही हाल हमारे देश के किसानों और गरीबों की हैं, यह लोग हमेशा बकरे की तरह शिकार होते रहें हैं, चाहे राजनीति मंदिर, मस्जिद, गुरुद्वारा, गिरजाघर, अस्पताल और सरकारी योजनाएं ही क्यों न हो हमेशा यही लोग शिकार होतें रहें हैं, जबकि गरीब 99 फीसद अपना वोट डालकर सरकार चुनता है, लेकिन राज हमेशा अमीर ही करता है, सवाल के लहजे में कहते हैं, कि गरीब क्यों नहीं समझ रहा है कि हम राजनीति के शिकार हो रहे हैं। यह एक बहुत बड़ा सवाल है, और इसका जवाब ढूंढना बहुत जरूरी है। कहते हैं, कि जिस दिन गरीब और किसान दोनों जागरुक हो गए और अधिकारों के लिए लड़ने लगेंगे, उस दिन कोई भी नेता न तो इनका और न ही इनके नाम पर आई योजनाओं का षिकार नहीं कर पाएगें। गरीबों और किसानों के वोटों पर राज करने वाले नेताओं को भी यह समझना होगा कि अगर यह लोग वोट नहीं देते तो वह राज नहीं कर पाते। अगर राजनीति की लंबी पारी खेलनी है, तो गरीबों और किसानों को उनका हक और अधिकार दिलाना होगा। अब कोई भी बड़े से बड़ा नेता गरीबों और किसानों को बेवकूफ बनाकर राज नहीं कर सकता। राज करना है, तो गरीबों और किसानों को अपने बगल में बैठाना होगा, उन्हें सिर्फ वोटर ही नहीं बल्कि हमदर्द समझना होगा। आज कजतने भी नेता दुबारा चुनाव नहीं जीत पा रहे हैं, उसके पीछे गरीबों और किसानों का वह जख्म छिपा हुआ है, जिस पर नेताओं ने मरहम लगाने के बजाए लाल मिर्च डाल दिया। बार-बार यह कहा जा रहा है, कि नेताओं को अपना अधिक समय गरीबों और किसानों के बीच गुजारना चाहिए, जो भी नेता करीब रहा है, उसे गरीबों और किसानों ने हमेशा गले लगाया।
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