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क्यों ‘डीओ’ और ‘एआर’ के ‘कदम’ रखते ही ‘होने’ लगी ‘खाद’ की ‘कालाबाजारी’?

क्यों ‘डीओ’ और ‘एआर’ के ‘कदम’ रखते ही ‘होने’ लगी ‘खाद’ की ‘कालाबाजारी’?

-क्यों इन दोनों के जिले में कदम रखने के बाद ही कृषि विभाग के पटल सहायक और एआर के सचिव का बैंक बैलेंस बढ़ा? क्यों नहीं जेडीए/डीडी जिला कृषि अधिकारी और पटल सहायकों पर लगाम लगा पा रहे हैं,? और क्यों नहीं डीआर अपनी भूमिका निभाया?

-आखिर मजबूत प्रशासन क्यों नहीं जिम्मेदारी निभा रहा? यह सभी किसानों की तरक्की और खुशहाली के रास्ते में बाधक बने हुए, किसानों का कहना है, कि जब तक दोनों भ्रष्ट अधिकारी जिले से बाहर नहीं जाएगें, तब तक खाद की कालाबाजारी और धान/गेहूं घोटाला होता रहेगा

-मुख्यमंत्री और कृषि मंत्री की तो बात ही मत कीजिए, भाषणों में इन्हें किसानों का हितेैशी माना जा रहा, असल में किसान इन दोनों को अपना सबसे बड़ा दुष्मन मान रहा, और कह रहा, जो सीएम और मंत्री भ्रष्ट अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई न कर सके, किसानों को खाद की कालाबाजारियों से मुक्ति न दिला सके, उन्हें हम लोग न तो मुख्यमंत्री मानते और न कृषि मंत्री

-यह तो तय है, कि 27 में दोनों को इसका खामियाजा भुगतना पड़ेगा, योगीजी तो किसी तरह जीत जाएगें, लेकिन शाहीजी का जीतना मुस्किल होगा, क्यों कि बस्ती का किसान ही नहीं शाहीजी के क्षेत्र का किसान भी रो रहा

-किसान हितों में लंबी लंबी डींग हांकने वाली कृषि मंत्री अपने घर देवरिया जाते समय बस्ती तो रुकते जरुर हैं, लेकिन क्यों नहीं उन्हें कोई खामी नजर नहीं आती है?

बस्ती। किसान सवाल कर रहा है, कि आखिर क्यों ‘डीओ’ और ‘एआर’ के ‘कदम’ रखते ही जिले में बड़े पैमाने पर ‘खाद’ की ‘कालाबाजारी’ होने लगी? इन दोनों के आने से पहले क्यों नहीं खाद की कालाबाजारी हो रही थी? क्यों इन दोनों के जिले में कदम रखने के बाद ही कृषि विभाग के पटल सहायक और एआर के सचिव का बैंक बैलेंस बढ़ा? क्यों नहीं जेडीए/डीडी जिला कृषि अधिकारी और पटल सहायकों पर लगाम लगा पा रहे हैं,? और क्यों नहीं डीआर अपनी भूमिका निभाया? सबसे बड़ा सवाल, आखिर मजबूत प्रशासन क्यों नहीं जिम्मेदारी निभा रहा? देखा जाए तो यह सभी किसानों की तरक्की और खुशहाली के रास्ते में बाधक बने हुए हैं। किसानों का कहना है, कि जब तक दोनों भ्रष्ट अधिकारी जिले से बाहर नहीं जाएगें, तब तक खाद की कालाबाजारी और धान/गेहूं घोटाला होता रहेगा। रही बात जनप्रतिनिधियों की तो तो अगर यह मजबूत होते तो क्या अधिकारी मनमानी कर पाते? मुख्यमंत्री और कृषि मंत्री की तो बात ही मत कीजिए, भाषणों में इन्हें किसानों का हितेैषी माना जा रहा है। असल में किसान इन दोनों को अपना सबसे बड़ा दुष्मन मान रहा है, और कह रहा है, जो सीएम और मंत्री भ्रष्ट अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई न कर सके, और किसानों को खाद की कालाबाजारियों से मुक्ति न दिला सके, उन्हें हम लोग न तो मुख्यमंत्री मानते और न कृषि मंत्री। यह तो तय है, कि 27 में दोनों को इसका खामियाजा भुगतना पड़ेगा, योगीजी तो किसी तरह जीत जाएगें, लेकिन शाहीजी का जीतना मुस्किल होगा, क्यों कि बस्ती का किसान ही नहीं शाही के क्षेत्र का किसान भी रो रहा है।  

कृषि विभाग में इतने बड़े पैमाने पर भ्रष्टाचार और अनियमितता के बावजूद जिला कृषि अधिकारी (डीएओ) पर कार्रवाई क्यों नहीं हो रही है? मंडल मुख्यालय होने के बाद भी कोई अधिकारी डीएओ पर कार्रवाई की जहमत क्यों नहीं उठा रहा है? किसान हितों में लंबी लंबी डींग हांकने वाली सरकार के कृषि मंत्री अपने घर देवरिया जाते समय बस्ती तो रुकते जरुर हैं, लेकिन क्यों नहीं उन्हें कोई खामी नजर नहीं आती है? विभाग की महत्वाकांक्षी योजना किसान सम्मान निधि से भ्रष्टाचार शुरू होकर यंत्रीकरण, लाइसेंस, खाद, बीज, रसायन तक में दलाली खा-खाकर अधिकारी व बाबू थुलथुल हो रहे हैं। इसके बावजूद कोई कार्रवाई न होना सरकार की पारदर्शी मंशा पर पानी फेर रहा है। प्रति बोरा उर्वरक के नाम पर कमीशन खाने वाले जिला कृषि अधिकारी का साम्राज्य फैलता जा रहा है। डीएम और मंडलायुक्त की नाक के नीचे किसान उर्वरक के लिए दर दर की ठोकरें खा रहा है। किसान, कहता हैं कि प्रदेश में बाबा की सरकार आने के बाद खाद की कभी कोई कमी नहीं हुई। लेकिन डीओ आरबी मौर्य और एआर आशीष कुमार श्रीवास्तव के जिले में कदम रखते ही मानों खाद का अकाल पड़ गया हो। ऊंचे दामों में बेची जा रही डीएपी और यूरिया की शिकायत भी करो तो कोई कार्रवाई नहीं होती है। डीएओ व उनके बाबू आरोपी दुकानदार से मोटी मलाई खाकर मामले को रफा-दफा कर देते हैं। उल्टे किसान, दुकानदार के दुश्मन बन जाते हैं। यही दुकानदार बाद में संबंधित किसान को उर्वरक बेचने से मना कर देते हैं। जिले के किसान, अब नाउम्मीदी में जी रहे हैं। वह कहते हैं कि न अधिकारी सुन रहे हैं, और न दुकानदार, सरकार भी चुप्पी साधे बैठी हुई है। नेताओं का क्या कहना, वह भी सिर्फ भाषणों में ही अन्नदाता को याद करते हैं। इस नाउम्मीदी के माहौल में अब किसानों का बस भगवान पर ही भरोसा है।

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