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क्या 35 गुणे 500 वाले पत्रकार सम्मान के योग्य?

क्या 35 गुणे 500 वाले पत्रकार सम्मान के योग्य?

-शर्म किसे आनी चाहिए, सम्मानित करने वाले को या सम्मानित होने वाले को?

-आखिर किस बात के लिए सम्मानित किया जा रहा? कौन सी विशेषता रही? क्या उनका कोई लेख प्रकाशित हुआ? क्या कोई अच्छी रिर्पोटिगं की? क्या को अपराध या भ्रष्टाचार को उजागर किया?

-अगर नहीं तो पत्रकार कहने और लिखने में भी हम्हें शर्म आनी चाहिए, लेकिन शर्म किसे आएगी? सम्मानित करने वाला या सम्मानित होने वाला? दोनों तो एक ही घाट के?

-पत्रकारिता को बनाए रखने के लिए यह जरुरी है, कि हल्के और सतही कार्यक्रम पर रोक लगे, सम्मान समारोह को व्यापार बनने से बचाना होगा?

-अन्यथा कार्यक्रम से निकलकर अतिथि एवं मुख्य अतिथि और भाषणकर्त्ता यह कहते हुए गाड़ी में बैठने लगेंगे कि हमने कितना योगदान दिया

-वैसे भी पत्रकारिता गुटीय स्तम्भों में विभाजित हो चुका हैं, इस पर विचार करना होगा कि बस्ती में कौन हैं पत्रकार, जो सम्मान पाने योग्य हो, यकीन मानिए, नहीं कोई मिलेगा

-बस्ती में अकर्मण लोगों को सम्मानित करने का फैशन चल गया, कोई नौकरशाह तो कोई विधायक बुलाएगा, लेकिन सम्मान के लिए तीन चार घंटा प्रतीक्षा अवष्य करातें

-कथित सम्मानित लोगों के लिए उस सम्मान पत्र की कीमत डस्टबिन में जाने के अतिरिक्त और कुछ नहीं होता, परंतु सम्मान तो हैं न?

-उंटों का विवाह हो रहा था, राधे गीत गा रहे थे, दोनों एक दूसरे की प्रशंसा कर रहे थे, कितना बढ़िया दूल्हा हैं, दूसरा कह रहा था, कितना अच्छा संगीत, यही कल प्रेस कल्ब में भी हुआ

बस्ती। एक तरह से बस्ती में पत्रकारिता कथित रुप से कुछ लोगों की बंधक हो गया है। लगभग 80 फीसद वे पत्रकार है, जो प्रायः कुछ भी नहीं लिखते, लेकिन सम्मानित मंचों पर उनकी पूजा किसी विषेषज्ञ की तरह होती है। कुछ पत्रकार संगठन कार्यक्रम आयोजित करते हैं, और वह कार्यक्रम पत्रकार हितों पर कम और व्यक्तिगत हितों पर अधिक रहता है। एक प्रशस्त्र पत्र और 150-200 रुपये का अंगवस्त्रम पाने के लिए तीन-चार घंटे तक अनुषासित श्रोता की भूमिका निभाते हैं, जो बौद्विक जघन्य अपराध है। हर सम्मान समारोह के बाद एक सवाल अवष्य उठता हैं, कि आखिर किस बात के लिए सम्मानित किया जा रहा? कौन सी विशेषता रही? क्या उनका कोई लेख प्रकाशित हुआ? क्या कोई अच्छी रिर्पोटिगं की? क्या कोई अपराध या भ्रष्टाचार को उजागर किया? अगर नहीं तो पत्रकार कहने और लिखने में भी हम्हें षर्म आनी चाहिए, लेकिन षर्म किसे आएगी? सम्मानित करने वालों को या सम्मानित होने वालों को? दोनों तो एक ही घाट के? पत्रकारिता को बनाए रखने के लिए यह जरुरी है, कि हल्के और सतही कार्यक्रम पर रोक लगे, सम्मान समारोह को व्यापार बनने से बचना/बचाना होगा? अन्यथा कार्यक्रम से निकलकर अतिथि एवं मुख्य अतिथि और भाषणकर्त्ता यह कहते हुए गाड़ी में बैठने लगेंगे कि हमने कितना योगदान दिया। वैसे भी बस्ती की पत्रकारिता गुटीय स्तम्भों में विभाजित हो चुका हैं, इस पर विचार करना होगा कि बस्ती में कौन हैं पत्रकार, जो सम्मानित योग्य हैं? सम्मानित उन पत्रकारों को करना चाहिए, जिसे समाज सम्मानित करना चाहता हैं, उन पत्रकारों को नहीं, जो 35 गुणे 500 में शामिल रहतें है। अगर समाज की निगाह से देखा जाए तो शयद ही कोई ऐसा पत्रकार होगा, जिसे सम्मानित करने पर समाज खुश होता है। किसी भी सम्मान पर समाज के लोगों का मोहर लगना आवष्यक है। एक सम्पादक साहब एक पत्रकार के पास गए और कहा कि आप अपना फोटो दे दिजीए आपको सम्मानित करना है, तब पत्रकार ने पूछा कि आखिर कौन सा हमने ऐसा कार्य कर दिया, जिसे लेकर आप हम्हें सम्मानित करना चाहते हैं, जबाव नहीं दे पाए, और चले गए। सवाल और विचार उन पत्रकारों को भी करना होगा और सोचना होगा जो सम्मान लेने जा रहे हैं, कि क्या वह किसी सम्मान के पात्र है? यकीन मानिए, जिस दिन कोई पत्रकार इस पर विचार कर लेगा, वह कभी सम्मान लेने नहीं जाएगा। जिस सम्मान को पाने के बाद पत्रकार ही पत्रकार का मजाक उड़ाए, तो ऐसा सम्मान किस काम का। बस्ती में अकर्मण लोगों को सम्मानित करने का फैशन चल गया, कोई नौकरशाह तो कोई विधायक बुलाएगा, लेकिन सम्मान के लिए तीन चार घंटा प्रतीक्षा अवष्य करातें। कथित सम्मानित लोगों के लिए उस सम्मान पत्र की कीमत डस्टबिन में जाने के अतिरिक्त और कुछ नहीं होता, परंतु सम्मान तो हैं न? उंटों का विवाह हो रहा था, राधे गीत गा रहे थे, दोनों एक दूसरे की प्रशंसा कर रहे थे, कितना बढ़िया दूल्हा हैं, दूसरा कह रहा था, कितना अच्छा संगीत, यही कल प्रेस कल्ब में भी हुआ।

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