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‘कृषि विभाग’ के ‘अफसरों’ ने किया ‘ईमानदारी’ का ‘श्राद्ध’!

‘कृषि विभाग’ के ‘अफसरों’ ने किया ‘ईमानदारी’ का ‘श्राद्ध’!

-जिस जेडीए की जिम्मेदारी शासनादेश का पालन करवाने और उसकी मानिटरिगं करने की, वह भ्रष्टाचारियों का संरक्षक बना हुआ

-अधिकारी उसी को मलाईदार पटल देते हैं, जो उन्हें अधिक से अधिक कमाकर दे सके और खुद मलाई भले ही चाहें वह पटल सहायक कितना भी भ्रष्टाचारी क्यों न हो

-इस विभाग के भ्रष्टाचारियों की पूजा होती, जो जितना कमा कर देता है, अधिकारी उसकी उतनी ही आवभगत करते हैं, और ऐसे लोगों की बेईमानी पर पर्दा डालते, बेईमानी करने में अगर इनका कोई सगा भी आ जाए तो उसे भी किनारे लगा देते

-जिले का पहला ऐसा विभाग होगा, जहां अधिकारी और पटल सहायक आपस में फूट डलवाकर राज करना चाहते, एक पटल सहायक दूसरे पटल सहायक के साथ दुष्मनों जैसा व्यवहार करते

-इस विभाग के अधिकारियों और कर्मचारियों ने बेईमानी करने और अपनों को धोखा देने के आलावा और कुछ सीखा ही नहीं, ऐसा लगता है, मानो इन लोगों ने धोखा देने और बेईमानी करने में पीएचडी की हो, यह लोग घर से निकलते ही किसे चूना लगाना की तैयार करके आते

बस्ती। अगर किसी को बेईमानी और अपनों को धोखा देने की कला सीखना है, तो वह कृषि विभाग के पटल सहायकों से सीख सकते हैं, और अगर किसी अधिकारी को फूट डलवाकर किस तरह मलाई खाया जाता है, अगर वह कला सीखना हैं, तो वह इस विभाग के अधिकारियों से सीख सकते हैं, और अगर किसी अधिकारी और कर्मचारी की ईमानदारी और अपनों के लिए समर्पण की भावना देखना हो तो वह रजिस्टी विभाग के अधिकारियों और कर्मचारियों में देख सकता हेै। ऐसा भी नहीं कि इस विभाग में भ्रष्टाचार नहीं होता, खूब होता है, लेकिन बाहर इस लिए भ्रष्टाचार की गूंज नहीं सुनाई देती, क्यों कि उनमें ईमानदारी और एक दूसरे के प्रति अपनापन की भावना रहती है। इस विभाग के चपरासी से लेकर साहब तक एक दूसरे का ख्याल रखते। कृषि विभाग की तरह इस विभाग में न तो कोई किसी का टांग खींचता और न कोई किसी का बुरा करता और न बुरा चाहता ही। इसी लिए इस विभाग के अधिकारियों और कर्मचारियों के बारे में कहा जाता हैं, कि इन लोगों ने ईमानदारी का एक तरह से श्राद्ध कर दिया। अब जरा अंदाजा लगाइए कि जिस जेडीए की जिम्मेदारी शासनादेश का पालन करवाने और उसकी मानिटरिगं करने की, वह भ्रष्टाचारियों का संरक्षक बना हुआ। यूंही नहीं यह भ्रष्टाचारियों के सरंक्षक बने हुए, भ्रष्टाचारी बाकायदा इन्हें इनका हिस्सा देते हैं, ताकि यह अपनी कलम न चलाएं और न छानबीन करें। कहा भी जाता है, कि अगर किसी विभाग का मंडल मुखिया ही भ्रष्टाचारियों का संरक्षक बन जाए तो फिर विभाग को कौन बचाएगा और कौन सरकार की योजनाओं को किसानों तक पहुंचाएगा और कौन किसानों को खाद उपलब्ध कराएगा? यह सवाल उन भ्रष्ट मंडल के अधिकारियों से हैं, जो ईमानदारी का श्राद्ध कर चुके है। कहा जाता है, कि इस विभाग के अधिकारियों और कर्मचारियों ने बेईमानी करने और अपनों को धोखा देने के आलावा और कुछ सीखा ही नहीं, ऐसा लगता है, मानो इन लोगों ने धोखा देने और बेईमानी करने में पीएचडी की हो, यह लोग घर से निकलते ही किसे चूना लगाना हैं, का होमवर्क करके आते है। अधिकारी उसी को मलाईदार पटल देते हैं, जो उन्हें अधिक से अधिक कमाकर दे सके और खुद मलाई भले ही चाहें वह पटल सहायक कितना भी भ्रष्टाचारी क्यों न हो? इस विभाग में भ्रष्टाचारियों की पूजा होती, जो जितना अधिक कमा कर देता है, अधिकारी उसकी उतनी ही आवभगत करते हैं, और ऐसे लोगों की बेईमानी पर पर्दा डालते, बेईमानी करने में अगर इनका कोई सगा भी आ जाए तो उसे भी किनारे लगा देत, वहीं जो कमाकर नहीं दे पाता उसे जबरिया और नियम विरुद्व रिटायर कर देते है। जिले का पहला ऐसा विभाग होगा, जहां अधिकारी और पटल सहायक आपस में फूट डलवाकर राज करतंे, एक पटल सहायक दूसरे पटल सहायक के साथ दुष्मनों जैसा व्यवहार करतें है।

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