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काशनमनी जमा कीजिए, ईओ का प्रभार ले जाइए!

काशनमनी जमा कीजिए, ईओ का प्रभार ले जाइए!

-मंडल में बिक रही नगर पंचायतें, पैसे वाले ईओ बन रहे खरीदार, खरीद रहे नगर पंचायत

-कमिश्नर के अधिकारियों का हनन करके डीएम जिसे चाह रहे उसे ईओ का प्रभार दे दे रहें

-कमिश्नर को मालूम ही नहीं और उनके नाम पर न जाने कितने डीएम ने अनेक को ईओ का अतिरिक्त प्रभार दे दिया

-कमिष्नर ने कहा कि अगर किसी डीएम ने उनके अधिकारों का दुरुपयोग करके ईओ का प्रभार देने वाला प्रस्ताव भेजा तो वह गलत, इस बात का ध्यान रखा जाएगा कि कोई डीएम उनके अधिकारों का हनन न कर सके

बस्ती। चौंकिए मत, मंडल में नगर पंचायतों का अतिरिक्त प्रभार लेने के लिए काशनमनी जमा करने की प्रथा के चलन का खुलासा हो रहा है। काशनमनी एलबीसी कार्यालय में जमा होने का दावा किया जा रहा है। अगर किसी पैसे वाले ईओ को दो-तीन अतिरिक्त नगर पंचायतों का प्रभार चाहिए, तो उसे अधिक काशनमनी जमा करना पड़ता है। काशनमनी जमा करने के बाद ईओ चाहें जितना घोटाला करें उसका कोई नेता या जनता बाल भी बांका नहीं कर पाएगा। काशनमनी एक तरह से अतिरिक्त प्रभार लेने वाले ईओ के लिए सुरक्षा कवच का काम कर रहा है। काशनमनी का इतना प्रभावशाली रहता है, कि उसके मिलने के बाद लिए अधिकारी नियम कानून तक को तोड़ने के लिए तैयार हो जातें है। यहां तक कि कमिष्नर के अधिकारों का भी डीएम और एडीएम दुरुपयोग करने से भी परहेज नहीं करते। जबकि स्पष्ट आदेश हैं, कि रिक्त नगर पंचायतों में ईओ का अतिरिक्त प्रस्ताव/प्रभार देने का अधिकार शासन ने डीएम से छीन लिया है। अब यह अधिकार कमिश्नर को दे दिया गया, बावजूद अधिकांश जिलों में डीएम और एडीएम, कमिश्नर के अधिकारों का उल्लघंन कर मनमानी कर रहे है। इसका खुलासा उस समय हुआ, जब कमिश्नर को शासनादेश की प्रति दिखाते हुए मीडिया ने पूछा कि आपने कितने ईओ को अतिरिक्त प्रभार देने के लिए शासन को प्रस्ताव भेजा, सवाल पर पहले तो कमिश्नर चौकें, जब उन्होंने शासनादेश को पूरी तरह पढ़ा और उसका सत्यापन लिपिक से कराया तो तब उन्हें पता चला कि प्रस्ताव देने का अधिकार डीएम को नहीं बल्कि कमिश्नर को है। कहा कि अगर किसी डीएम ने उनके अधिकारों का हनन किया तो वह गलत है। यह भी कहा कि इस बात का ध्यान रखा जाएगा, कि इसकी पुनरावृत्ति न हो। अगर किसी डीएम ने कमिश्नर के पास प्रस्ताव भेजा होता तब कमिश्नर को अपने अधिकारों का पता चलता, यहां पर तो मंडल के एक भी डीएम ने कमिश्नर के पास न तो प्रस्ताव भेजा और न कमिश्नर ने शासन को ही भेजा। जब कोई डीएम, कमिश्नर बनकर खुद प्रस्ताव भेजेगा तो कमिष्नर को कैसे शासनादेश की जानकारी होगी? ठीक इसी तरह डीएम को भी उनके एडीएम या एलबीसी बाबू जब तक नियमों की जानकारी नहीं देगें, उन्हें कैसे पता चलेगा कि उनका अधिकार है, कि नहीं। अगर बाबू डीएम के सामने शासनादेश रखा होता, तो कोई भी डीएम, कमिश्नर के अधिकारों का उल्लघंन नहीं करता। जब कमिश्नर को कीर्ति सिंह के बारे में बताया गया कि उन्हें दो अतिरिक्त नगर पंचायतों का प्रभार दिया गया, और मूल तैनाती से उसकी दूरी लगभग 70 किमी. हैं, पर कहने लगे कि यह गलत है। क्यों कि प्रभार हमेशा निकटतम नगर पंचायत के ईओ को देने का प्राविधान है। इससे यह साबित होता है, कि नगर पंचायतें भी बिक रही है, और इसके खरीदार कोई नेता नहीं बल्कि पैसे वाले ईओ ही होते है। इसी लिए काशनमनी वाले नगर पंचायतों में सबसे अधिक भ्रष्टाचार और अनियमितता शिकायतें हो रही हैं। जितना यह काशनमनी जमा करते हैं, उसका हजार गुना सूद समेत वापस ले लेते होगें। कहना गलत नहीं होगा कि काशनमनी ने नगर पंचायतों को भ्रष्टाचार की आग में झोंक दिया।

हाईकोर्ट कभी भी डीएम के अधिकार को नहीं छीनती अगर ईओ गिरधारी लाल स्वर्णकार सहित 29 ईओ ने इसे हाईकोर्ट के डबल बेंच में चुनौती न देते। प्रभार के लेने/देने के मामले में यह भी डीएम, एडीएम और एलबीसी बाबू से त्रस्त हो चुके थे। मजबूरी में इन्हें हाईकोर्ट जाना पड़ा और पूरी व्यवस्था को चैलेंज करना पड़ा। वरना कोई ईओ सरकार को चुनौती न देता। इनकी ही अपील पर हाईकोर्ट ने 27 नवंबर 2013 को एक एतिहासिक निर्णय सुनाया, जिसमें डीएम के अधिकार को ही समाप्त कर दिया। भले ही हाईकोर्ट ने डीएम के अधिकार को समाप्त कर दिया, लेकिन बस्ती सहित मंडल के अन्य जनपदों में आज भी डीएम ही ईओ को अतिरिक्त प्रभार दे रहे है। ऐसे भी डीएम रहें जो कमिश्नर के संज्ञान तक में नहीं लाए। अगर लाए होते तो पिछले लगभग डेढ़ साल से कीर्ति सिंह को मुंडेरवा के अतिरिक्त बभनान और रुधौली नगर पंचायत का अतिरिक्त प्रभार न मिलता। अनेक जानकारों का कहना और मानना है, कि जब तक काशानमनी जमा करने की प्रथा समाप्त नहीं होगी, तब तक नगर पंचायतों से भ्रष्टाचार समाप्त नहीं होगा। जनता इस मामले में कमिश्नर से कड़े कदम उठाने की मांग कर रही है। कीर्ति सिंह जैसी न जाने कितने ईओ होगें जो सवाल बनकर शासन और कोर्ट के सामने खड़ी है। पहले आयुक्त और अपर आयुक्त मंडलीय समीक्षा करते थे, लेकिन वह भी बंद हो गया। बैठक में कमिंया निकलकर आती थी, डांट फटकार लगती थी, कार्यो की प्रगति में सुधार होता था, पदेन अपर आयुक्त प्रशासन ने भी बैठक लेना बंद कर दिया।

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