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करोड़ों कमाने को ‘रची’ गई 143 ‘फर्जी’ नियुक्ति की ‘साजिश’

करोड़ों कमाने को ‘रची’ गई 143 ‘फर्जी’ नियुक्ति की ‘साजिश’

-जिला पंचायत सिद्धार्थनगर की ओर से मैनपावर सप्लाई का अनुबंध दिव्यांषु खरे प्रोपराटर चित्रांश इंटरप्राइजेज से किया गया, अनुबंध चार सितंबर 25 से 31 अगस्त 27 तक का, अनुबंध पत्र पर एएमए का हस्ताक्षर

-इस अनुबंध के तहत दिव्यांशु खरे के फर्म को मैनपावर के तहत 143 सफाई कर्मी, कम्प्यूटर आपरेटर, डाटा इंटी आपरेटर, सुपरवाइज और चतुर्थ श्रेणी की आपूर्ति करनी थी

-खास बात यह कि इस अनुबंध से जिला पंचायत सिद्धार्थनगर और फर्म के प्रोपराइटर दोनों इंकार कर रहें

-दिव्यांशु खरे ने कहा कि जैसे ही उन्हें इस फर्जीवाड़े का पता चला, वैसे ही दो दिन पहले वह कमिष्नर, डीएम, जिला पंचायत अध्यक्ष और एएमए को लिखित में देते हुए कहा कि इससे उनका कोई लेना-देना नहीं

बस्ती। जिला पंचायत सिद्धार्थनगर में बड़े पैमाने पर मैनपावर के जरिए फर्जी नियुक्ति करने की साजिश का खुलासा हुआ। इस नियुक्ति के जरिए करोड़ों कमाने की साजिश साजिशकर्त्ताओं की ओर से रचने का दावा किया जा रहा है। अगर पत्र वायरल नहीं होता तो न जाने कितने बेरोजगार साजिशकर्त्ताओं के षिकार हो गए होते। जो अनुबंध पत्र वायरल हुआ वह भी काफी चौकाने वाला है। जिला पंचायत सिद्धार्थनगर की ओर से मैनपावर सप्लाई करने का अनुबंध ‘दिव्यांशु खरे प्रोपराटर चित्रांश इंटरप्राइजेज’ से होना बताया गया, अनुबंध चार सितंबर 25 से 31 अगस्त 27 तक का दिखाया गया, अनुबंध पत्र पर एएमए का हस्ताक्षर और चार सितंबर 25 की तिथि पड़ी हुई है। इस अनुबंध के तहत दिव्यांशु खरे के फर्म को 143 सफाई कर्मी, कम्प्यूटर आपरेटर, डाटा इंटी आपरेटर, सुपरवाइज और चतुर्थ श्रेणी की आपूर्ति करनी थी। खास बात यह कि इस अनुबंध के होने से जिला पंचायत सिद्धार्थनगर और फर्म के प्रोपराइटर दोनों इंकार कर रहें हैं। दिव्यांशु खरे का कहना हैं, कि दो दिन पहले जैसे ही उन्हें इस फर्जीवाड़े का पता चला, वैसे ही उन्होंने कमिश्नर, डीएम, जिला पंचायत अध्यक्ष और एएमए को लिखित में जानकारी देते हुए कहा कि इससे उनका कोई लेना-देना नहीं है। उन्होंने यह भी कहा कि यह उन्हें और चित्रांश जैसी संस्था को बदनाम करने की साजिश रची गई, ताकि उनका कारोबार प्रभावित हो। कहते हैं, कि इसकी जांच होनी आवष्यक है, ताकि लोगों को साजिशकर्त्ताओं के बारे में पता चल सके। यह भी कहा कि कुछ लोग उन्हें और उनके परिवार को पहले भी बदनाम करने की साजिश रच चुके है। देखा जाए तो प्रथम दृष्टया अनुबंध फर्जी प्रतीत होता है।  

कहा जा रहा है, कि अगर यह वाकई किसी को बदनाम करने और उसके कारोबार को प्रभावित करने की साजिश रची गई तो इस साजिश का पर्दाफाश होना जरुरी है। वैसे भी मैनपावर को लोगों ने लूटपाट का केंद्र बना दिया, आज इसी मैनपावर के चलते जिले के कई लोग कहां से कहां पहुंच गए। मैनपावर की आपूर्ति करने वाली संस्थाओं पर हमेशा बेरोजगारों का उत्पीड़न करने का आरोप लगता रहा। पीएफ एवं ईएसआई भी जमा नहीं करते। एक गरीब बेरोजगार से अगर आठ-दस हजार की नौकरी के लिए उससे एक साल का मानदेय ले लेंगे तो वह तो टूट ही जाएगा। पहले यह लोग नौकरी के नाम पर लाख-दो लाख लेते हैं, उसके बाद उन्हें पूरा मानदेय भी नहीं देते। कहा भी जाता है, मैनपावर का काम वही व्यक्ति कर सकता है, और लूटखसोट कर सकता है, जिसके सिर पर सांसद और विधायकों का हाथ होता है। यह माननीयगण इस लिए विरोध नहीं करते क्यों कि यह भी हिस्सेदार होते है। बिना पूंजी लगाए अगर किसी को करोड़पति बनना है, तो नेताओं को पकड़ लीजिए और बना डालिए मैनपावर आपूर्ति करने की संस्था। आरोप तो सभी मैनपावर आपूर्ति करने वालों पर लगता है, किसी पर कम तो किसी पर अधिक। जो व्यक्ति गरीबों का खून चूसता है, उसे या फिर उसके परिवार को एक न एक दिन खामियाजा भुगतना ही पड़ता है।

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