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हर्रैया’ में ‘विचारधारा’ की नहीं, ‘महत्वकांक्षा’ की ‘लड़ाई’!

हर्रैया’ में ‘विचारधारा’ की नहीं, ‘महत्वकांक्षा’ की ‘लड़ाई’!

-महत्वकांक्षी नेताओं का कोई विचारधारा नहीं होता, वह अपने महत्वकांक्षा को पूरा करने के लिए किसी भी विचारधारा में समाहित हो जातें

-वहीं विचारधारा वाले नेताओं की भी महत्वकाक्षां होती, लेकिन वह अपनी महत्वकाक्षां को पूरा करने के लिए विचारधारा से कभी समझौता नहीं करतें

-हर्रैया में जो दो व्यक्तियों को लड़ाने का खेल हो रहा है, उनमें एक तो पूर्व कांग्रेसी और दूसरा चारों धाम के यात्री, जाहिर सी बात हैं, कि भाजपा से टिकट पाने की महत्वकाक्षां तो एक की ही पूरी होगी, दोनों को धन और बाहुबल की श्रेणी में जनता रख रही

-ऐसे में देखना कि पार्टी सिटिगं एमएलए को टिकट देती या फिर दूसरे दल से आए पर दावं खेलती, दोनों की महत्वाकांक्षा विधायक बनने की, कोई तीसरी बार तो कोई चौथी बार विधायक बनने का सपने को पूरा करने में लगा हुआ

-अजय सिंह उस समय चुनाव जीते जब सब कह रहे थे, कि हर्रैया को छोड़कर अन्य चार सीटों पर भाजपा चुनाव जीतेगी, यह वही अजय सिंह हैं, जो राजकिशोर सिंह को हराकर चुनाव जीते

-जिस तरह हर्रैया में पार्टी और पार्टी के लोग गेम खेल रहे हैं, कहीं उसका खामियाजा 27 में पार्टी को न भुगतना पड़े, चुनाव तो दोनों लड़ेगे हो सकता है, कि इसमें एक हराने के लिए चुनाव लड़े

-अगर पार्टी ने समय रहते डैमेज को कंटोल नहीं किया तो 27 में अर्न्तकलह का रिकार्ड टूटेगा, देखने वाली बात यह होगी कि भाजपा का मूल कार्यकर्त्ता किसके साथ खड़ा होगा

-बगावत होने से भी इंकार नहीं किया जा सकता, हो सकता है, इसी को देकते हुए दोनों संभावित प्रत्याशी अपने-अपने क्षेत्र और अपने लोगों को मजबूत करने में लगे हुएं, पार्टी एक का क्षेत्र बदल भी सकती, रही बात क्षेत्र की जनता को तो उसके दोनों हाथों लडडू रहेगा

बस्ती। आज के नेताओं को पार्टी के विचारधाराओं से कोई सरोकार नहीं रह गया, बल्कि वह अपनी महत्वकाक्षां को पूरा करने के लिए कपड़े की तरह विचारधारा बदलतें है। देखा जाए तो आज की राजनीति विचारधारा और महत्वकांक्षा पर चल रही। महत्वकांक्षी नेताओं का कोई विचारधारा नहीं होता, वह अपने महत्वकांक्षा को पूरा करने के लिए किसी भी विचारधारा में समाहित हो जातें, वहीं विचारधारा वाले नेताओं की तो महत्वकाक्षां होती ही है, लेकिन वह अपनी महत्वकाक्षां को पूरा करने के लिए विचारधारा से कभी समझौता नहीं करतें, हालांकि ऐसे नेताओं का अभाव है। आज के नेता सबसे अधिक विचारधारा की ही तिलांजलि दे रहे हैं। हर्रैया में जो दो व्यक्तियों को लड़ाने का खेल हो रहा है, उनमें एक तो पूर्व कांग्रेसी और दूसरा चारों धाम के यात्री, जाहिर सी बात हैं, कि भाजपा से टिकट पाने की महत्वकाक्षां तो किसी एक की ही पूरी होगी, दोनों को धन और बाहुबल की श्रेणी में जनता रख रही। ऐसे में देखना होगा कि पार्टी सिटिगं एमएलए को टिकट देती या फिर दूसरे दल से आए पर दावं लगाती, दोनों की महत्वाकांक्षा विधायक बनने की, कोई तीसरी बार तो कोई चौथी बार विधायक बनने के सपने को पूरा करने में लगा हुआ हैं। अजय सिंह उस समय चुनाव जीते जब सब कह रहे थे, कि हर्रैया को छोड़कर अन्य चार सीटों पर भाजपा चुनाव जीतेगी, यह वही अजय सिंह हैं, जो राजकिशोर सिंह को हराकर चुनाव जीते। जिस तरह हर्रैया में पार्टी और पार्टी के लोग गेम खेल रहे हैं, कहीं उसका खामियाजा 27 में पार्टी को न भुगतना पड़े, चुनाव तो दोनों के लड़ने की संभावना जताई जा रही, जिसे भाजपा से टिकट नहीं मिलेगा, वह भाजपा को हराने के लिए दूसरे दल से चुनाव लड़ सकता। अगर पार्टी ने समय रहते डैमेज को कंटोल नहीं किया तो 27 में अर्न्तकलह का रिकार्ड टूटेगा, देखने वाली बात यह होगी कि भाजपा का मूल कार्यकर्त्ता किसके साथ खड़ा होगा? बगावत होने से भी इंकार नहीं किया जा सकता, इसी को देखते हुए दोनों संभावित प्रत्याशी अपने-अपने क्षेत्र और अपने लोगों को एकजुट और मजबूत करने में लगे हुएं, पार्टी एक का क्षेत्र बदल भी सकती, रही बात क्षेत्र की जनता की तो उसके दोनों हाथों में लडडू रहेगा। दोनों की लड़ाई में कहीं बाजी पहली बार चुनाव लड़ने वाले के हाथ न लग जाए। तीसरा तभी जीतेगा जब वह दोनों से अधिक पैसा खर्च करेगा। वैसे हर्रैया की जनता सभी को मौका देने में विष्वास रखती है, हो सकता है, कि इस बार हर्रैया की जनता को नया विधायक मिल जाए। राजकिशोर सिंह का चुनाव लड़ने और जीतने का भी अपना एक अलग इतिहास रहा। लेकिन इधर कुछ चुनाव से उनके सितारे साथ नहीं दे रहे है। इन्हें ऐसे लोगों में माना जाता है, जो कभी हार नहीं मानते, वरना इतना चुनाव हारने के बाद किसी भी नेता की कमर टूट जाती है। इनमें जो चुनाव लड़ने की ललक हैं, वह बहुत कम नेताओं में देखने को मिलती है। गिर का उठना और उठकर गिरना इन्हें अच्छी तरह आता है। इन्हें विरोध करना नहीं आता, यह जब विपक्ष में थे, तब भी इन्होंने भ्रष्टाचार का विरोध नहीं किया। इनके परिवार को जितना चुनाव लड़ने और जीतने का अनुभव है, उतना सांसदजी के परिवार को भी नहीें।

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