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हर्रैया में आखिर कौन युवा पीढ़ी को नशेड़ी बना रहा?

हर्रैया में आखिर कौन युवा पीढ़ी को नशेड़ी बना रहा?

-नशे का यह अवैध कारोबार जिले के बार्डर तक फैला हुआ, इसकी चपेट में सबसे अधिक स्कूली बच्चे और बेरोजगार युवक ही आ रहें

-खुले आम गांजा और चरस का कारोबार हो रहा हैं, आखिर क्यों नहीं पुलिस इस अवैध कारोबार को रोक पा रही

-इस अवैध नशे के कारोबार में कारोबारी के साथ पुलिस और पत्रकारों के भी शामिल होने की चर्चाएं हो रही

-युवा पीढ़ी बर्बाद हो रही, घर का सामान गेहूं और चावल बेचकर जानलेवा शोक नौजवान बच्चे पूरा कर रहें, सड़कों के किनारे बेहोशी और नशे के हालत में गिरे पड़े मिलते

बस्ती। धीरे-धीरे पूरा हर्रैया क्षेत्र नशे का कारोबार करने वालों का हब बनता जा रहा है। इसकी चपेट में न जाने अब तक कितने युवा पीढ़ी आकर बर्बाद हो चुकें है। इसके शिकार अधिकतर स्कूली बच्चे होते है। यह अपने नशे के शोक को पूरा करने के लिए घर का सामान, गेहूं और चावल तक बेच रहे है। नषे का यह अवैध कारोबार जिले के बार्डर तक फैला हुआ, इसकी चपेट में सबसे अधिक स्कूली बच्चों के साथ बेरोजगार युवक भी आ रहें। सड़क किनारे बच्चे नशे की हालत में बेहोश पड़े मिल रहे है। खुले आम गांजा और चरस का कारोबार हो रहा हैं। सवाल उठ रहा है, कि आखिर क्यों नहीं पुलिस इस अवैध कारोबार को रोक पा रही? आखिर यह गांजा और भांग कहां से रहा है, और कौन इसे लेकर आ रहा है? और किसके संरक्षण में यह अवैध कारोबार फलफूल रहा? सबसे बड़ा सवाल आज की जो युवा पीढ़ी बर्बाद हो रही हैं, उसका जिम्मेदार कौन? क्यों नहीं क्षेत्र के नेता इस अवैध कारोबार को समाप्त करने के लिए आगे आ रहें? कहीं ऐसा तो नहीं यह लोग खुद इस कारोबार के हिस्सेदार हों? अवैध नशे के इस कारोबार में कारोबारी के साथ पुलिस, नेता और पत्रकारों के भी शामिल होने की चर्चाएं हो रही।

हर्रैया क्षेत्र के कुछ ऐसे भी नशे के कारोबारी है, जिन्होंने युवा पीढ़ी को बर्बाद करके महल खड़ा कर लिया। नेता और पुलिस हर चीज का अभियान तो चलाती है, लेंकिन नशे के कारोबार को बंद करने के लिए कोई अभियान नहीं चलाती। याद रखिएगा, अगर क्षेत्र का कोई भी युवा इसकी चपेट में आकर अपनी जिंदगी बर्बाद करता है, तो इसके लिए उसके माता-पिता तो जिम्मेदार होते ही हैं, साथ ही वह लोग भी जिम्मेदार होते हैं, जो इसका विरोध करने के बजाए चुप रहते है। शराब से अधिक गांजा और भांग का लत खराब होता है, एक बार यह लत जिस भी युवा को लग गया, समझो उसका जीवन बर्बाद हो गया। दुनिया के सामने एक्टर संजय दत्त इसके उदाहरण है। समाज के हर व्यक्ति का यह दायित्व हैं, कि वह युवा पीढ़ी को बर्बाद होने से बचाए, इससे दूर रखे। सबसे महत्वपूर्ण भूमिका इसमें पुलिस की हो जाती हैं, कहा भी जाता है, अगर पुलिस चाह जाए तो एक पुड़िया भी नहीं बिक सकता, बस चाहने भर की देर है। पुलिस इसे लेकर जागेगी भी कि नहीं? यह सवाल बना हुआ है। क्यों कि नशे का अवैध कारोबार करने वालों को समाज और नेता से नहीं बल्कि पुलिस से अधिक डर रहता है। जिस दिन कोई एसओ या फिर चौकी इंचार्ज यह ठान लें कि वह अपने क्षेत्र में नशे का कारोबार नहीं होने देगें, उस दिन किसी की हिम्मत नहीं पड़ेगी कि कि कारोबार कर सके। पत्रकारों को भी इसमें अहम भूमिका निभानी होगी। इन्हें नौजवानों को बर्बाद करने वालों को एक बार नहीं बल्कि बार-बार बेनकाब करना होगा। कारोबारियों का दोस्त बनने के बजाए उनका सबसे बड़ा दुष्मन बनना पड़ेगा। क्षेत्र के पत्रकारों पर आरोप लग रहा है, कि वह इस संवेदनशील मामले में अपनी भूमिका को ईमानदारी से नहीं निभा पा रहे है। इनकी जितनी रुचि पत्रकारों के टांग खींचने और उन्हें बदनाम करने में रहती हैं, अगर उसका आधा नशे के कारोबारियों के खिलाफ रहती तो आज क्षेत्र में पत्रकारों की जयजयकार होती।

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