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गत दिनों बिहार लोक सेवा आयोग

 गत दिनों बिहार लोक सेवा आयोग

(बीपीएससी) की एकीकृत 70वीं संयुक्त प्रारंभिक प्रतियोगिता परीक्षा में अनियमितता एवं पर्चा लीक के आरोपों के चलते पूरी परीक्षा को रद करने की मांग को लेकर पटना में अभ्यर्थियों का धरना प्रदर्शन जारी है। इस बीच पर्चा लीक आरोपों के कारण पटना के कुछ केंद्रों पर इसकी पुनर्परीक्षा कराई गई है। गौरतलब है कि बीपीएससी की प्रारंभिक परीक्षा के दौरान एक बड़े परीक्षा केंद्र पर गड़बड़ी एवं पर्चा लीक होने के आरोपों को प्रशासन ने स्वीकारा था।

अभ्यर्थियों की दलील है कि एक केंद्र पर पर्चा लीक होने के चलते पूरी परीक्षा पर इसका असर हुआ होगा। इसलिए इस पूरी परीक्षा को रद करके बीपीएससी को दोबारा परीक्षा करानी चाहिए़, जिससे परीक्षा की पारदर्शिता सुनिश्चित हो सके और मेहनती छात्रों को न्याय मिल सके। बिहार शासन द्वारा छात्रों के आंदोलन का दबाने के लिए किए गए अमानवीय बर्ताव करने के बाद भी अभ्यर्थी पुनः परीक्षा की मांग पर अड़े हुए हैं। इस घटना ने बीते वर्ष में कुछ प्रतियोगी परीक्षाओं में धांधली के आरोपों के चलते छात्रों के हुए उग्र प्रदर्शनों की याद दिला दी है।

पटना में युवाओं को आंदोलन करते हुए दो सप्ताह हो गए हैं, इसके बावजूद इसका किसी परिणाम पर न पहुंच पाना बेहद दुर्भाग्यपूर्ण है। तीन लाख से अधिक अभ्यर्थियों के भविष्य को प्रभावित करने वाली प्रतियोगी परीक्षा के पहले तो पर्चे लीक होना, फिर उस पर शासन का ऐसा कठोर रवैया किसी भी स्वस्थ लोकतंत्र के अनुरूप नहीं है। लालू-राज में हुए जमीन के बदले नौकरी घोटाले की जांच अभी पूरी भी नहीं हो पाई थी कि बीते साल शिक्षक भर्ती, कम्युनिटी हेल्थ अफसर आदि परीक्षाओं में अनियमितता के आरोप लगना शुभ संकेत नहीं है।

देश में प्रतियोगी परीक्षाओं की साख की बात करें तो यह केवल एक राज्य का मसला नहीं है, अपितु केंद्र द्वारा कराई जा रही परीक्षाएं भी धांधली से मुक्त नहीं हैं। हर साल अभ्यर्थियों की बढ़ती संख्या को देखते हुए एक ही समय में एकल मानक के आधार पर लाखों अभ्यर्थियों का सफल मूल्यांकन कर पाना एक बड़ी चुनौती रहती है। ऐसे में नकारात्मक तत्वों द्वारा जानबूझकर एक छोटी सी गड़बड़ी भी एक ही बार में शासन-प्रशासन एवं अभ्यर्थियों के कठोर परिश्रम पर पानी फेर देती है।

पकड़े जाने पर भी कठोर कानूनों के अभाव में बहुत अधिक सजा न हो पाने से भर्ती माफिया और साल्वर गैंग पिछले कुछ समय में बहुत तेजी से सक्रिय हो गए हैं। इसके चलते हाल में सरकार ने सुरक्षित परीक्षा प्रणाली के लिए एक सकारात्मक पहल की है। उसने विभिन्न भर्ती परीक्षाओं के पेपर लीक आदि अपराधों में शामिल लोगों को सजा देने के लिए कठोर कानून बनाया है। इसमें दोषियों को आजीवन कारावास की सजा एवं एक करोड़ रुपये के जुर्माने का प्रविधान किया है।

प्रतियोगी परीक्षाओं में धांधली एवं अपारदर्शिता वर्षों से मेहनत कर रहे छात्रों के भविष्य के साथ खिलवाड़ ही नहीं, बल्कि उसके पूरे परिवार के साथ अन्याय है। प्रतिभा के अनुरूप व्यवसाय न मिल पाने या फिर अधिकतम आयु सीमा पार चुके प्रतिभावान अभ्यर्थियों का उपयुक्त नियोजन न होना प्रतिभा पलायन से कम नहीं है। यह राष्ट्रीय बौद्धिक संपदा के ह्रास का ही एक दूसरा रूप है। फिर इसके परिणामस्वरूप उपजे सामाजिक अन्याय को भी नजरअंदाज नहीं किया जा सकता।

यदि निश्चित कसौटी से निम्न स्तर वाले अभ्यर्थियों की नियुक्ति हो जाती है तो कभी भी उस पद से वांछनीय दक्षता, ईमानदारी एवं विश्वसनीयता की उम्मीद नहीं की जा सकती। इसी से समझ सकते हैं कि यह समस्या कितनी गंभीर है, परंतु दुखद यह है कि ऐसे संजीदा मामलों पर भी सकारात्मक सुझाव देने के बजाय लोग अपनी राजनीतिक रोटियां सेंक रहे हैं।

परीक्षाओं को कदाचार मुक्त बनाने में केवल पक्ष-विपक्ष ही नहीं, बल्कि संबंधित प्रशासनिक तंत्र की भी अहम भूमिका को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। इसलिए उनकी भी यह नैतिक जिम्मेदारी बनती है कि जिन माध्यमों से वे स्वयं एक ओहदे तक पहुंचे हैं उनकी साख और गरिमा को बनाए रखने में भूमिका निभाएं।

वैसे देखा जाए तो आज तकनीक, परिवहन, इन्फ्रास्ट्रक्चर आदि क्षेत्रों में भारत की सूरत काफी बदल चुकी है। फिर भी देश में परीक्षा प्रणाली का तंत्र इनको अपनाने की दौड़ में अभी बहुत पीछे है। हमें एक लीक-प्रूफ और पारदर्शी परीक्षा प्रणाली विकसित करने के लिए इनका समुचित इस्तेमाल करना चाहिए। एक पारदर्शी एवं लीक-प्रूफ परीक्षा प्रणाली के अभाव में न तो सामाजिक न्याय की परिकल्पना पूर्ण हो सकती है, न ही देश 2047 तक विकसित बन सकता है।

              डॉ. तुलसी भारद्वाज।

(लेखिका शिक्षाविद् एवं सामाजिक कार्यकर्ता हैं)

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