- 29°C Noida, Uttar Pradesh |
- Last Update 11:30 am
- 29°C Greater Noida, Uttar Pradesh
‘डीएम’ ने जारी किया दो दर्जन ‘अवैध’ अल्टासाउंड के ‘लाइसेंस’!
-बस्ती को दीमक की तरह चाट रहें डा. एके चौधरी और डा. एसबी सिंह, एक अल्टासाउंड का नोडल तो दूसरा पैथालाजी और प्राइवेट अस्पताल का नोडल, इन दोनों की रिपोर्ट पर डीएम जारी किया लाइसेंस
-डा. एके चौधरी के निरीक्षण रिपोर्ट पर नियम विरुद्व 2023-24 और 2024-25 में लगभग 23 से 25 ऐसे अल्टासाउंड का लाइसेंस एमएस सर्जन और बच्चों के डाक्टर के नाम पर जारी हुआ
-अब जरा अंदाजा लगाइए कि गर्भवती महिलाओं के अल्टासाउंड की जांच एमएस सर्जन और बच्चों वाले डाक्टर्स कर रहे, लाइसेंस जारी करने से पहले एक भी डाक्टर से फार्म डी नहीं भरवाया, किसी से पांच लाख लिया तो किसी से चार लाख, लेकिन लिया सभी से
-सबसे अधिक अवैध रुप से पैथालाजी और प्राइवेट अस्पताल का लाइसेंस जारी करने में इसके नोडल डा. एसबी सिंह का हाथ रहा, इन्होंने लाइसेंस और जांच के नाम पर सबसे अधिक पैसा कमाया
-तिजोरी दोनों भ्रष्ट डाक्टरों ने भरी और बदनामी डीएम की हुई, इन दोनों ने लाइसेंस जारी करने में डीएम को भी गुमराह किया, क्यों कि डीएम के नाम 25 हजार फीस जमा होता है, और इन्हीं के हस्ताक्षर से लाइसेंस जारी होता
बस्ती। बहुत कम लोग जानते हैं, कि अल्टासाउंड, पैथालाजी और प्राइवेट अस्पतालों का लाइसेंस सीएमओ नहीं बल्कि डीएम जारी करते है। इनके हस्ताक्षर से ही लाइसेंस जारी होता है। एक तरह से अगर किसी अल्टासाउंड, पैथालाजी एवं प्राइवेट अस्पतालों का वैध/अवैध रुप से लाइसेंस जारी होता है, तो इसके लिए मुख्य रुप से डीएम को ही जिम्मेदार माना जाता है, भले ही चाहें तीनों के नोडल ने पैसा लेकर गलत निरीक्षण रिपोर्ट दिया हो, लेकिन डीएम अपनी जिम्मेदारी से नहीं बच सकते। यह सही है, कि एक डीएम को मेडिकल लाइन की बारीकियों की जानकारी नहीं रहती, उसके सामने जो लाइसेंस की पत्रावली लाई जाती है, उसी को सही मानकर लाइसेंस जारी कर देते है। क्यों कि डीएम को अपने अधिकारियों पर भरोसा जो रहता है, लेकिन डीएम को क्या मालूम रहता है, कि जिस पर भरोसा कर रहा, वहीं बेईमान और चोर है। जिस तरह जिले में 2023-24 और 2024-2025 में अल्टासाउंड के लगभग 25 लाइसेंस जारी हुए, दावा किया जा रहा है, सभी लाइसेंस मानक के विपरीत जारी किए गए, अब जरा अंदाजा लगाइए कि गर्भवती महिलाओं का अल्टासाउंड करने के लिए गाइनी या फिर रेडियोलाजिस्ट की जरुरत पड़ती है, लेकिन एमएस सर्जन और बच्चों वाले डाक्टर के नाम लाइसेंस जारी कर दिया गया। यह भी दावा किया जा रहा है, कि अगर इसकी उच्च स्तरीय जांच हो जाए तो इसमें सबसे पहले निरीक्षण आख्या देने वाले डा. अनिल कुमार चौधरी फंसेगें, नौकरी तक इनकी जा सकती है, जेल की हवा तक खा सकते है। न्यायालय से भले ही इन्हें यह कर राहत मिल जाए कि लाइसेंस हमने नहीं बल्कि डीएम ने जारी किया। जाहिर सी बात हैं, कि अगर नियम विरुद्व लाइसेंस जारी हुआ है, तो रकम भी मोटी ली गई होगी। कहने का मतलब डा. एके चौधरी पैसे के लिए डीएम तक को फंसाने में परहेज नहीं करते। इनके लिए डीएम उतना महत्वपूर्ण नहीं जितना पैसा। कहा जाता है, कि यह पैसे के लिए कुछ भी कर सकतें हैं, खुद का अवैध रुप से अल्टासाउंड तक चला सकते हैं। कहते हैं, कि इन्हें जब भी सब्जी खरीदने के लिए पैसे की आवष्यकता पड़ती यह नियम विरुद्व अल्टासाउंड की जांच करने निकले जाते, हाल ही में हर्रैया में इसे लेकर इन्हें खूब गालियां मिली और विरोध का सामना करना पड़ा, कहा गया पहले जाइए अपना अवैध अल्टासाउंड बंद करिए, फिर हम लोगों की जांच करिए। बेआबरु होकर इन्हें हर्रैया से निकलना पड़ा। अगर एक डिप्टी सीएमओ रैंक का अधिकारी वसूली के लिए गाली खाता और अपमानित होता है, तो फिर आप समझ सकते हैं, कि ऐसे लोगों के लिए इज्जत और मान सम्मान नहीं बल्कि पैसा महत्वपूर्ण है। आप लोगों को बता दें कि किसी भी अल्टासाउंड या फिर पैथालाजी और प्राइवेट अस्पतालों की जांच सीधे नोडल नहीं कर सकते, इसके लिए डीएम की ओर से अधिकारी नामित किए जाने का प्राविधान है। यहां तक कि सीएमओ भी सीधे तौर पर जांच करने अधिकार नहीं है। डीएम को लाइसेंस जारी करने के लिए इस जिम्मेदार माना जाता है, क्यों कि यह कमेटी के अध्यक्ष होते हैं, औरी इनकी अध्यक्षता में लाइसेंस जारी करने का निर्णय होता है। यहां तक कि जो 25 हजार फीस डीडी के रुप में जमा होता है, यह डीडी डीएम के खाते के नाम से जमा होता।
अब हम आपको दूसरे सबसे भ्रष्ट पैथालाजी और प्राइवेट अस्पतालों के नोडल डा. एसबी सिंह के बारे में बताते है। कहना गलत नहीं होगा कि डा. एसबी सिंह और डा. अनिल कुमार चौधरी दोनों मिलकर जिले को दीमक की तरह चाट रहे है। डा. एसबी सिंह भी वहीं करते हैं, जो डा. एके चौधरी करते है। दोनों में कोई फर्क नहीं है। चूंकि दोनों की गिनती भ्रष्टम नोडल में होती है, तो जाहिर सी बात यह सीएमओ के दुलारे तो रहेेगें। यह दोनों पूर्व के सीएमओ के भी दुलारे रहे। सीएमओ साहब का वही डाक्टर या अधिकारी या बाबू दुलारा होता है, जो उनका कमाउपूत होता है। सीएमओ और डा. एसबी सिंह के भ्रष्टाचार का सबसे बड़ा सबूत एमओआईसी कप्तानगंज डा. अनूप कुमार चौधरी है। इनका बेटा पीएमसी के डा. रेनू राय की लापरवाही के चलते मर गया, यह जांच और कार्रवाई के लिए चिल्लाते रहें, लिखा पढ़ी और साक्ष्य भी दिया, लेकिन जांच और कार्रवाई करने के बजाए दोनों ने सौदा कर लिया। इससे बड़ा भ्रष्टाचार का सबूत मिल ही नहीं सकता। जब यह लोग अपने एमओआईसी को न्याय देने के बजाए सौदा कर लिया तो आम नागरिक की षिकायत पर यह लोग क्या करते होगें, इसे आसानी से समझा जा सकता है। ओमबीर अस्पताल के मामले में जिस तरह दोनों ने दोषी डाक्टरों को क्लीन चिट दिया, उसे पूरी दुनिया ने देखा। मृतक पल्टू राम का बेटा वीरेंद्र प्रताप इस बात का सबूत देता रहा, कि उसके पिता की मौत डाक्टरों की लापरवाही से हुई, लेकिन मोटा लिफाफा के आगे पीड़ित की सुनी ही नहीं गई।
0 Comment