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बिक गए आईओ, बिक गए सरकारी वकील, मिल गई

बिक गए आईओ, बिक गए सरकारी वकील, मिल गई

डीएस को जमानत!

-150 करोड़ से अधिक का धान का घोटाला करने वाले पीसीएफ के बर्खास्त डीएस अमित चौधरी को अगर पांच एफआईआर के मामले में अग्रिम जमानत मिलती है, तो इसे सिद्वार्थनगर के डीएम की हार मानी जा रही

-डीएम सिद्वार्थनगर देखते रह गए और उनके आईओ लाखों रुपये में बिक गए, कोर्ट के मांगने के बावजूद पांचों आईओ ने एक माह में भी रिकार्ड तक उपलब्ध नहीं कराया

-जब भी कोई सरकारी वकील घोटालेबाजों के हाथों बिकता है, तो वह कोर्ट में उसका विरोध नहीं करते, बल्कि दिखाने के लिए हमेशा की तरह एक लाइन में यह लिखते हैं, कि ‘हम जमानत का घोर विरोध करतें’ आखिर क्या इन्हें एक लाइन लिखने के लिए प्रति केस 18 हजार का भुगतान होता?

-इसी अग्रिम जमानत को लेकर बर्खास्त डीएस अमित कुमार चौधरी सेवा मंडल में अपील किया ताकि नौकरी बहाल हो सके, जिस तरह यह आईओ और सरकारी वकील को खरीद सकते हैं, उसी तरह यह सेवा मंडल को भी खरीद सकते

-अगर सेवा मंडल के लोग बिक गए, जिसकी संभावना अधिक है, तो डीएस अमित कुमार चौधरी फिर सीना तानकर बस्ती/सिद्वार्थनगर में नौकरी करते देखे जा सकते

बस्ती। आप लोगों ने अक्सर सुना होगा कि सरकार हाईकोर्ट या सुप्रीम कोर्ट में मुकदमा हार गई। सरकार के अधिकांष के हारने या फिर भ्रष्टाचारियों को जमानत मिलने का सबसे बड़ा कारण आईओ यानि विवेचना अधिकारी और सरकारी वकीलों का गैरजिम्मेदाराना रवैया और बिकना माना जाता है। सवाल उठ रहा है, कि कैसे करोड़ों का घोटाला करने वालें अधिकारी या कर्मचारी को जमानत मिल जाती, या फिर वह निर्दोश साबित हो जाते है। जिस मुकदमें पर सरकार लाखों रुपया सरकारी वकील और पैरोकार के उपर खर्च करती है, अगर वही मुकदमा सरकार हार जाए तो सवाल तो सरकारी वकील और आईओ पर उठेगा ही। आप लोग यह भी अक्सर सुनते और ताज्जुब करते होगें कि अरे इस भ्रष्टाचारी को कैसे जमानत मिल गई, या फिर यह कैसे रिहा हो गया? घोटालेबाजों का जहां कोर्ट में आईओ और सरकारी वकील को जमकर विरोध करना चाहिए, वहीं दोनों ढाल बनकर खड़े रहते है। अब आप समझ गए होगें कि 100-150 करोड़ के धान का घोटाला करने वाले पीसीएफ के डीएस अमित कुमार चौधरी को कैसे पांच मामले में एक साथ अग्रिम जमानत मिल गई? बताया जाता है, कि कोर्ट से जमानत पाने के लिए बर्खास्त डीएस ने आईओ और सरकारी वकील को मुंहमांगी रकम दिया। एक-एक जमानत के लिए 20 से 30 लाख का खर्चा करने की बाते छन कर आ रही है। डीएस को इस लिए जमानत मिल गई, क्यों कि आईओ ने एक माह बाद भी कोर्ट के मांगने के बावजूद भी रिपोर्ट प्रस्तुत नहीं किया, जिसका फायदा डीएस और उनके वकीलों की फौज ने खूब उठाया, रही सही कसर सरकारी वकीलों ने मन से विरोध न करके पूरा कर दिया। कहनेे का मतलब डीएस वाले इस मामले में न्यायालय को छोड़कर सभी बिक गए, यह अच्छी बात हैं, कि बिकने वालों को डीएम सिद्धार्थनगर और सरकार को धोखा देने की अच्छी खासी कीमत मिली, क्यों कि अगर डीएस को जमानत नहीं मिलती तो यह सेवा मंडल में अपने बर्खास्तगी के खिलाफ अपील नहीं कर पाते। वह दिन दूर नहीं जब 150 सौ करोड़ के धान घोटाले के आरोपी जनपद सिद्वार्थनगर/बस्ती के पीसीएफ के डीएस अमित कुमार चौधरी बहाल होकर बस्ती मंडल में कार्य करते हुए न दिखाई दे। क्यों कि जिस तरह इन्हें पांच एफआईआर के मामले में अग्रिम जमानत मिली, उसी तरह सेवा मंडल से भी इन्हें बहाल होने में देरी नहीं लगेगी, क्यों कि जब आईओ और सरकारी वकील बिक सकते हैं, तो सेवा मंडल के बिकने में कितनी देरी लगेगी। हालांकि सेवा मंडल को खरीदना आसान नहीं होगा, क्यों कि इस मंडल में शामिल सभी लोगों को यह अच्छी तरह मालूम हैं,  िकवह कितने बड़े घोटालेबाज की सुनवाई कर रहे है।

कई साल पहले एक घोटालबाजे ने एक बड़े अधिकारी से कहा कि साहब हमारे खिलाफ मुकदमा दर्ज करा दीजिए, इस तरह परेशान मत करिए। उसने यह भी कहा कि हर घोटालेबाज के लिए आईओ एक ढाल बनते है। जो काम अधिकारियों को पांच-दस लाख देने पर भी नहीं होता, उस काम को आईओ और पुलिस वाले लाख 50 हजार में कर देते है। डीएस को सभी मामलों में जमानत मिलने से इनका मन बढ़ गया और अब यह सभी एफआईआर को निरस्त कराने में लगे हुए हैं, अपील भी कर दिया है, और इसमें भी इनके मददगार आईओ और सरकारी वकील ही साबित होते है। यह सही है, जो व्यक्ति दस-पांच करोड़ नहीं बल्कि 100 से 150 करोड़ का घोटाला किया हो, अगर उसने पांच-दस करोड़ खर्च भी कर दिया तो उसका क्या गया?

डीएस के गलत कामों में भागीदार रहे सचिवों का कहना है, कि डीएस साहब तो सिद्धार्थनगर के ईमानदार डीएम के चलते फंस गए, वरना उनके साहब सभी को खरीदना अच्छी तरह जानते है। एक ईमानदार डीएम को उनके ही आईओ और सरकारी वकील ने धोखा दे दिया। डीएम को इस बात की छानबीन करनी चाहिए कि क्यों नहीं उनके जनपद के आईओ ने समय से पत्रावली कोर्ट में प्रस्तुत किया? कमिष्नर को भी इस मामले में डीएम सिद्धार्थनगर को सपोर्ट करना चाहिए, क्यों कि यह मामला एक दो करोड़ के घोटाले का नहीं बल्कि 150 करोड़ के घोटाले का है। आईओ और सरकारी वकील अच्छी तरह जानते हैं, कि उनका कुछ नहीं होगा, तो क्यों न बहती गंगा में डुबकी लगा लिया जाए? देखा जाए तो सबसे बड़ा धोखा जनपद सिद्धार्थनगर के आईओ ने दिया। जानबूझकर इन्होंने कोर्ट में पत्रावली समय से प्रस्तुत नहीं किया, क्यों कि यह सभी बिक चुके थे, डीएस ने सभी के मुंह पर नोटों की गडडी रखकर उनके मुंह को बंद कर दिया था। अगर यही हाल रहा तो डीएस के खिलाफ जितने भी भ्रष्टाचार के आरोप में एफआईआर दर्ज हैं, सब एक-एक करके निरस्त हो जाएगा। जिन मामलों में डीएस को अग्रिम जमानत मिली वह 0094/24, 7040/25, 0182/24 और 0070/25 हैं, एक एफआईआर का नंबर नहीं दिया गया। सभी एफआईआर निरस्त करने के मामले में हाईकोर्ट में 19 अगस्त 25 को सुनवाई में लगी हुई है। कहा जाता है, कि शासन-प्रशासन एफआईआर तो करा देता है, लेकिन जिस तरह प्रभावी पैरवी कोर्ट में करनी चाहिए दस तरह नहीं करता, जिसके चलते अपराधी को या तो जमानत मिल जाती है, या फिर उसके खिलाफ दर्ज एफआईआर ही क्वेस्ट हो जाता। इससे बड़ी सरकार की नाकामी और क्या होगी, कि 150 करोड़ के धान का गबन करने वाले आरोपी डीएस अमित कुमार चौधरी को जमानत मिल गई, जिसे जेल के पीछे होना चाहिए, वह आईओ और सरकारी वकीलों के बिक जाने से मौजमस्ती कर रहा, और अपने खिलाफ सारे सबूतों को मिटाने की साजिश कर रहा है, नौकरी वापस पाने के लिए उपर तक जतन कर रहा।

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