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भ्रष्टाचार और भ्रष्टाचारियों को बढ़ावा दे रहे अधिवक्ता!

भ्रष्टाचार और भ्रष्टाचारियों को बढ़ावा दे रहे अधिवक्ता!

-जब वकील साहब ही घूस देगें तो भ्रष्टाचार रुकेगा कैसे? जिन बार एसोसिएशन के पदाधिकारियों की जिम्मेदारी भ्रष्टाचार को रोकने की वही भ्रष्टाचार को बढ़ावा दे रहें

-जिस दिन वकील साहब लोग चाह जाएगें उस दिन न तो किसी रिकार्ड बाबू की और किसी पेशकार की हिम्मत घूस मांगने की पड़ेगी

-एकाध को छोड़कर कोई भी ऐसा न्यायालय नहीं जहां पर पेशकार और अधिकारी घूस न लेते हो

-वकील साहब कमिष्नर से शिकायत करने से कुछ नहीं होगा, अगर कुछ करना है, तो विजिलेंस वाले से पकड़वाना होगा

बस्ती। न्यायालयों में बढ़ रहे भ्रष्टाचार के लिए समाज अधिवक्तागण को भी जिम्मेदार मान रहा है। सवाल तो अधिवक्ताओं पर भी उठ रहा है, और पूछा जा रहा है, कि वकील साहब क्या आप की जिम्मेदारी नहीं बनती कि न्यायालयों में चल रहे घूस को रोके? सबसे अधिक बार एसोसिएशन के उन पदाधिकारियों के उपर सवाल उठ रहा है, जिनकी जिम्मेदारी भ्रष्टाचार को रोकने की हैं, न कि बढ़ावा देने की। कहा भी जाता है, कि जिस दिन वकील साहब चाह जाएगें उस दिन न तो किसी रिकार्ड बाबू की और न किसी पेशकार की हिम्मत घूस मांगने की होगी। सवाल उठ रहा है, कि क्यों किसी सही काम के लिए घूस दिया जाए? अगर कोई वकील साहब कमिष्नर साहब से यह कहें कि रिकार्ड बाबू घूस मांग रहा है, तो बदनामी कमिष्नर की नहीं बल्कि वकील साहब की होगी, अगर वहीं वकील साहब अपने क्लाइंट की ओर से शिकायत करते तों बात कुछ समझ में आती, लेकिन जब पीड़ित वकील साहब शिकायत कर रहे है, तो समझा जा सकता है, कि व्यवस्था हाथ से निकल चुका है। वकील साहब की शिकायत पर अगर कमिष्नर साहब त्वरित एक्षन लेते तो माना जाता कि वकील साहब की मेहनत सफल हुई। लेकिन यहां पर तो रिकार्ड बाबू का कुछ भी नहीं हुआ, अगर अधिकारी सोच विचार कर निर्णय लेगें तो न्याय हो चुका। साक्ष्य के आधार पर वकील साहबों ने कमिष्नर से शिकायत किया था, वह भी एक नहीं बल्कि तीन-तीन अधिवक्ताओं ने किया, जिनमें दो तो बार एसोसिएशन के पदाधिकारी शामिल रहे।

अधिवक्ता और जनता की ओर से बार-बार कहा जा रहा हैं, कि अगर डीएम कार्यालय में भ्रष्टाचार होगा तो फिर डीएम, एडीएम और सीआरओ के बैठने और रहने का क्या मतलब? इस मामले में डीएम से कड़ी कार्रवाई करने और कलेक्टेट को भ्रष्टाचारमुक्त करने की मांग उठ रही है। कलेक्टेट को भ्रष्टाचार से मुक्त कराने के लिए एडीएम और सीआरओ सहित अन्य एसडीएम की भी महत्वपूर्ण भूमिका होनी चाहिए। आरोप तो अधिकारियों पर भी लग रहे हैं, और कहा भी जा रहा है, कि जब तक अधिकारी अधीनस्थों से अनुचित मांग करते रहेगें तब तक भ्रष्टाचार समाप्त नहीं हो सकता। जिस तरह रिकार्ड बाबू ने अधिवक्ताओं से यह कहा था, कि क्या करे साहब जब छोटे साहब को हर माह 30 हजार देना पड़ेगा तो रेट पांच गुना बढ़ेगा ही। अधिवक्ताओं का यह भी कहना है, कि अगर कमिष्नर साहब की जगह कोई कड़क कमिष्नर होता तो रिकार्ड बाबू को त्वरित निलंबित करवा देता। इसी भ्रष्टाचार के चलते हर्रैया के एसडीएम को मार तक खाना पड़ा। हाल ही में लखनऊ का एक मामला चर्चा में रहा। किसी वकील साहब ने पेशकार के द्वारा लिए गए घूस का वीडियो बना लिया, जज साहब को त्वरित पेशकार को निलंबित करना पड़ा। अगर लखनऊ जैसी हिम्मत बस्ती के किसी वकील साहब में हो तो बस्ती के वकील साहब की भी चर्चा होगी। यहां पर तो खुले आम दंडाधिकारी के तीन फिट की दूरी पर घूस लिया जाता है, और साहब देखकर अंजान बने रहते है। एक वकील साहब ने कहा भी कि दंडाधिकारी को प्रशिक्षण के दौरान यह सिखाया जाता है, कि आप सिर्फ सामने देखिए, आप के अगल-बगल क्या हो रहा है, वह देखना आप का काम नहीं। वही आज हो रहा। दंडाधिकारी सिर्फ सामने देखते है। उनके बगल-बगल क्या हो रहा है, उनसे कोई मतलब नहीं है। इसे भी भ्रष्टाचार को बढ़ावा देने जैसा माना जा सकता है।

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