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अध्यक्षजी बताइए, सिर्फ हर्रैया में ही क्यों फुल रेट पर टेंडर पड़ता?

अध्यक्षजी बताइए, सिर्फ हर्रैया में ही क्यों फुल रेट पर टेंडर पड़ता?

-कप्तानगंज, महादेवा, सदर और रुधौली विधानसभाओं में क्यों 30 से 35 फीसद बिलो रेट में टेंडर फाइनल होता, जब कि अधिकारी भी चाहते हैं, कि सब जगह फुल रेट में टेंडर फाइनल हो, ताकि सड़को की गुणवत्ता खराब न हो

-जबकि जो ठेकेदार हर्रैया में टेंडर डालते वही ठेकेदार अन्य तीनों विधानसभा क्षेत्रों में डालते, यह असमानता क्यों?

-जो सुविधा ठेकेदारों को हर्रैया में मिल रही है, वही सुविधा क्यों नहीं अन्य चारों विधानसभाओं में ठेकेदारों को मिल रही?

-अध्यक्षजी जब ठेकेदारों में ही एकरुपता नहीं रहेगी तो फिर पीडब्लूडी ठेकेदार एसोसिएष्न के होने और न होने का क्या औचित्व?अध्यक्षजी कौन ठेकेदारों को हर्रैया जैसी सुविधा देने से रोक रहा?

बस्ती। यह बात सही है, कि पीडब्लूडी के ठेकेदारों में एकता का अभाव आज से नहीं पहले से है। किसी मुद्वे पर ठेकेदारों पर सहमति बन ही नहीं पाती, बनती भी है, तो बढ़ी मुस्किल से है। इतिहास गवाह है, कि जब भी ठेकेदार संघ के बैनर तले बड़ा आंदोलन हुआ, उसे असफल करने में कुछ लालची ठेकेदारों का हाथ रहा। मीडिया के कुछ लोग गवाह है, कि बाहर यह लोग दरी बिछाकर अधिकारी मुर्दाबाद के नारे लगाते, गालियंा देते, चोर बेईमान कहते और जैसे ही चेंबर या साहब के आवास पर जाते नतमस्तक हो जाते। इसी लिए बार-बार कहा जा रहा है, कि ठेकेदारों में कभी एकता हो ही नहीं सकती, इन्हें जहां भी और जिससे भी लाभ दिखा, उस ओर यह भागे चले जाते है। अगर इन सभी में एकता होती तो आज पांचों विधानसभाओं में फुल रेट पर टेंडर पड़ता, जिसका फायदा ठेकेदार और सड़कों पर चलने वाली जनता को मिलता। एक नेता को लाभ और चार नेता को नुकसान पहुंचाने का जमाना नहीं रहा। नेता, ठेकेदारों का जितना नुकसान कर सकते, उतना नुकसान ठेकेदार नेता का नहीं कर सकते, नेता तो अपने नुकसान की भरपाई कर लेता है, लेकिन ठेकेदार उसकी भरपाई नहीं कर पाता। जिले में रह कर कोई भी ठेकेदार और अधिकारी नेताओं को नाराज करके चैन से नहीं रह सकता। अगर वाकई ठेकेदारों में एकता है, तो पांचों विधानसभाओं में फुल रेट डालिए। जो ठेकेदार हर्रैया में फुल रेट डालता है, वही ठेकेदार अन्य विधानसभाओं में 30 से 35 फीसद बिलो डालता है। कहां रही ठेकेदारों में एकता और कहां रहा, ठेकेदार संघ। अधिकारी तो चाहते हैं, कि फुल रेट में टेंडर फाइनल हो, लेकिन ठेकेदार ही नहीं चाहते कि सड़कों की गुणवत्ता ठीक हो। सवाल उठ रहा है, कि आखिर ठेकेदारों को हर्रैया जैसी सुविधा अन्य विधानसभाओं में देने से परहेज क्या है? कौन इन्हें सपाईयों को लाभ पहुंचाने से रोक रहा है। ठेकेदार इतने ईमानदार भी नहीं होते कि वह जांच का सामना कर सके, या यह कह सके कि उन्होंने जो भी सड़क का निर्माण किया वह विभाग के मानक के अनुसार किया। फुल रेट में भी कोई ठेकेदार यह गांरटी नहीं दे सकता कि वह जांच का सामना करने को तैयार है। बहुत कम ऐसे ठेकेदार होगें, जिन्होंने नुकसान उठाकर गुणवत्तापरक सड़क का निर्माण किया हो, जिस तरह नेता अपना नुकसान बर्दास्त नहीं कर सकता है, ठीक उसी तरह ठेकेदार भी अपना नुकसान बर्दास्त नहीं कर सकते। इसके बाद भी अगर कोई ठेकेदार ईमानदारी का एचएमवी रिकार्ड बजाता है, तो वह गलत बजाता है। आज तक कोई भी ऐसा ठेकेदार संघ का अध्यक्ष नहीं हुआ, जिसने अपने काम के प्रति पूरी तरह ईमानदारी दिखाया हो। जायज मांगों को भी दमदारी से नहीं रख पाते। कहा भी जाता है, कि जिस संगठन का मुखिया कमजोर होता है, वह संगठन कभी अपने मकसद में कामयाब नहीं होता है। इनके सफल न होने का एक कारण इनका मीडिया से कोई लगाव न होना रहा। यही कारण है, कि आज यह लोग अपनी एक खबर को प्रकाशित करवाने के लिए इन्हें मीडिया से मिन्नतंे करना पड़ता है। शायद ही कभी इन लोगों किसी मीडिया वाले को बुलाकर एक कप चाय पिलाया हो, या फिर 26 जनवरी, 15 अगस्त को अखबार को विज्ञापन दिया हो। मीडिया से संबध बनाना कोई गोरखपुर केशरद सिंह से सीखे।

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