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आर्थिक विकास की धुरी बनते गांव,

आर्थिक विकास की धुरी बनते गांव,             "हाल में आई एसबीआई रिसर्च की रिपोर्ट में कहा गया है कि सरकारी सहायता कार्यक्रमों के सकारात्मक प्रभावों और विकास कार्यों के कारण देश में गरीबी में कमी आई है। यह पिछले वर्ष में घटकर पांच प्रतिशत से भी कम रह गई है।

गरीबी में यह कमी शहरी इलाकों की तुलना में ग्रामीण इलाकों में अधिक तेजी से हुई है। जहां वित्त वर्ष 2011-12 में ग्रामीण गरीबी 25.7 प्रतिशत और शहरी गरीबी 13.7 प्रतिशत थी, वहीं 2023-24 में ग्रामीण गरीबी घटकर 4.86 प्रतिशत और शहरी गरीबी घटकर 4.09 प्रतिशत पर आ गई।

वित्त वर्ष 2009-10 से 2023-24 के बीच शहरी इलाकों में हर माह प्रतिव्यक्ति उपभोक्ता खर्च 1,984 रुपये से बढ़कर 6,996 रुपये और ग्रामीण इलाकों में यह खर्च 1,054 रुपये से बढ़कर 4,122 रुपये हो गया। इस प्रकार देखें तो पिछले 14 वर्षों में आमदनी बढ़ने से जहां शहरों में हर माह प्रतिव्यक्ति उपभोक्ता खर्च 3.5 गुना हो गया, वहीं यह ग्रामीण इलाकों में करीब चार गुना हो गया।

शहरों की तुलना में गांवों में खर्च की वृद्धि ज्यादा है। विश्व बैंक द्वारा प्रकाशित दुनिया में गरीबी संबंधी रिपोर्ट-2024 में भी कहा गया है कि भारत में अत्यधिक गरीबों की संख्या 1990 में 43.1 करोड़ थी। यह संख्या घटते हुए 2021 में 16.74 करोड़ और 2024 में करीब 12.9 करोड़ रह गई। नीति आयोग की तरफ से वैश्विक मान्यता के मापदंडों पर आधारित बहुआयामी गरीबी इंडेक्स (एमपीआई)-2024 के मुताबिक देश में पिछले दस वर्षों में करीब 25 करोड़ लोग बहुआयामी गरीबी के दायरे से बाहर आए हैं।

इससे जाहिर होता है कि भारत में तेजी से बढ़ता विकास आम आदमी की आमदनी बढ़ा रहा है और गरीबी में तेजी से घटने की प्रवृत्ति उभर रही है। इसके साथ ही शहरों की तुलना में गांवों में गरीबी तेजी से घट रही है और उनकी आमदनी एवं क्रय शक्ति में भी तेज वृद्धि हो रही है। इसमें प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना ने अहम भूमिका निभाई है।

सरकार ने इसके तहत 80 करोड़ से अधिक गरीब एवं कमजोर वर्ग के लोगों को 2028 तक मुफ्त अनाज दिया जाना सुनिश्चित किया है। देश भर में मौजूदा सार्वजनिक वितरण प्रणाली की पांच लाख से अधिक उचित मूल्य की दुकानों के माध्यम से यह नि:शुल्क खाद्यान्न वितरण किया जा रहा है। यह महत्वपूर्ण है कि 2016 से राशन की दुकानों में प्वाइंट आफ सेल (पीओएस) मशीनों की शुरुआत से इस योजना के प्रभावी क्रियान्वयन में मदद मिली है।

2011-12 की खपत संख्या के आधार पर शांता कुमार समिति ने कहा था कि पीडीएस व्यवस्था में करीब 46 प्रतिशत लीकेज है। इस समय यह लीकेज घटकर 28 प्रतिशत रह गया है। राशन कार्ड के डिजिटलीकरण के चलते देश में पीडीएस को अधिक कारगर बनाने के लिए आधार एवं ईकेवाईसी प्रणाली के माध्यम से सत्यापन कराने के बाद अब तक फर्जी पाए गए पांच करोड़ 80 लाख से अधिक राशन कार्ड रद कर दिए गए हैं।

डिजिटल इंडिया, शौचालय, स्वच्छ पेयजल और आयुष्मान भारत योजना, स्वच्छ ईंधन के लिए उज्ज्वला योजना, सभी घरों में बिजली के लिए सौभाग्य आदि योजनाओं से भी देश में गरीबी में कमी आ रही है। खासतौर से करीब 54 करोड़ से अधिक जनधन खातों, करीब 138 करोड़ आधार कार्ड तथा करीब 115 करोड़ से अधिक मोबाइल उपभोक्ताओं की शक्ति वाले जैम (जेएएम यानी जनधन, आधार, मोबाइल) से सुगठित डिजिटल ढांचा गरीबों के सशक्तीकरण में असाधारण भूमिका निभा रहा है।

जैम के बल पर देश के गरीब लोगों के खातों में सीधे आर्थिक राहत हस्तांतरित हो रही है। 2014 से वर्ष 2024 तक 40 लाख करोड़ रुपये से अधिक की राशि लाभार्थियों के खातों में सीधे जमा हो चुकी है। इन सबसे गरीबी में बड़ी कमी आई है और ग्रामीण भारत विशेष रूप से लाभान्वित हुआ है।

आज गांवों के लाखों घरों को पीने का साफ पानी मिल रहा है। लोगों को डेढ़ लाख आयुष्मान आरोग्य मंदिरों से बेहतर स्वास्थ्य सेवाएं मिल रही हैं। डिजिटल तकनीक की मदद से डाक्टर और अस्पताल भी गांवों से कनेक्ट हो रहे हैं।

पीएम किसान सम्मान निधि के जरिये किसानों को छह हजार रुपये की सालाना आर्थिक मदद दी जा रही है। बीते 10 वर्षों में कृषि ऋण साढ़े तीन गुना बढ़ गए हैं। अब पशुपालकों और मछली पालकों को भी किसान क्रेडिट कार्ड दिए जा रहे हैं। फसलों पर दी जाने वाली सब्सिडी और फसल बीमा की राशि को भी बढ़ाया है।

स्वामित्व योजना के जरिये गांव के लोगों को संपत्ति के दस्तावेज दिए जा रहे हैं। गांव के युवाओं को मुद्रा योजना, स्टार्टअप इंडिया, स्टैंडअप इंडिया जैसी योजनाओं के जरिये मदद की जा रही है।

उम्मीद की जानी चाहिए कि सरकार नए वर्ष में गरीबी को और घटाने के लिए गरीबों के सशक्तीकरण की मौजूदा योजनाओं के कारगर क्रियान्वयन के साथ नई योजनाओं एवं नए रणनीतिक प्रयासों के साथ आगे बढ़ेगी और बहुआयामी गरीबी का सामना कर रहे करीब 15 करोड़ से अधिक लोगों को 2030 तक गरीबी से बाहर लाने के लक्ष्य पर ध्यान देगी।

सरकार को चाहिए कि विकसित भारत के लिए ग्रामीण अर्थव्यवस्था को और सशक्त बनाने की डगर पर आगे बढ़े। इससे भी ग्रामीणों की आमदनी में तेजी वृद्धि होगी और ग्रामीण गरीबी में और कमी आएगी।

डॉ. जयंतीलाल भंडारी

(लेखक अर्थशास्त्री हैं)

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