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आखिर’ नेता ‘यसमैन’ को ही ‘क्यों’ अपना कथित प्रतिनिधि ‘बनाते’?

आखिर’ नेता ‘यसमैन’ को ही ‘क्यों’ अपना कथित प्रतिनिधि ‘बनाते’?

-जिनके पास सच बोलने की हिम्मत हो उसे ही सांसद और विधायकों का प्रतिनिधि होना चाहिए, ऐसे लोग नेताओं के प्रतिनिधि नहीं होने चाहिए जिन्हें क्षेत्र के लोग ही अपना प्रतिनिधि न मानते हो, और जिन्होंने कभी जनता का चुनाव न जीता हो

-एकाध को छोड़कर अन्य ऐसे प्रतिनिधि हैं, जो डीएम और एसपी के चेंबर में घुसते ही इतना लंबा सलाम ठोंकेगें कि मानो वह सांसद और विधायक का प्रतिनिधि न होकर कोई सरकारी मुलाजिम हो, यह लोग तब तक हाथ जोड़े खड़े रहते हैंें, जब तक साहब लोग नमस्ते का जबाव नहीं दे देंतें, एकाध तो पैर भी छूते

-एक दो को छोड़कर कोई भी ऐसा प्रतिनिधि नहीं होगा, जो नेताजी को चुनाव में 100-50 वोट दिला सके, ऐसे लोग जीताते तो नहीं हैं, अलबत्ता हराने में अवष्य मदद साबित होतें, क्यों कि ऐसे लोगों की छवि अपने गांव गढ़ी से लेकर कस्बा और चौराहे तक खराब होती

-अनेक ऐसे प्रतिनिधि भी हैं, जो नेताजी के नाम पर अनैतिक कार्य करवा रहे हैं, नेताजी का पैड तक बेच दे रहें, नेताजी की मेहरबानी से ही ऐसे प्रतिनिधियों की आर्थिक स्थित इतनी मजबूत हो जाती है,  िकवह लक्जरी गाड़ी से चलने लगता

-चूंकि नेताजी का प्रतिनिधि नेताजी कार प्रतिबिंब होता है, इस लिए उसे भी ऐसा कार्य और व्यहार करना चाहिए, ताकि नेताजी की बदनामी न हो और उसका लाभ चुनाव में नेताजी को मिले

-ऐसे लोगों को प्रतिनिधि बनाने से क्या फायदा जिनके कहने पर गांव वाले ही नेताजी को वोट न करें, जब राज्यसभा के सदस्य और एमएलसी को छोड़कर सांसद और विधायकों को प्रतिनिधि बनाने का कोई अधिकार और प्राविधान ही नहीं हैं, तो क्यों कथित प्रतिनिधि बनातें

-ऐसा लगता है, कि अधिकांश नेताओं ने अपने कथित प्रतिनिधियों को लूट खसोट करने का लाइसेंस जारी कर दिया हो, अगर नही ंतो क्यों नहीं नेता अपने प्रतिनिधियों के क्रियाकलापों की समीक्षा करते

-एक कथित प्रतिनिधि ने कहा कि भईया कोई नेता सच का आइना नहीं देखना चाहता, अगर कोई दिखाने का प्रयास करता है, तो त्वरित उसे बाहर का रास्ता का दिखा दिया जाता, नेताओं के हारने का सबसे बड़ा कारण अपनों के सच को न सुनना और नकारना रहा

-अगर सासंद और विधायक का कथित प्रतिनिधि अगर अधिकारियों को चार लाइन का कायदे से पत्र नहीं लिख सकता क्या ऐसे लोग प्रतिनिधि बनने लायक होतें?

-साउथ के नेता कभी अपना प्रतिनिधि पाकेट के लोगों को नहीं बनाते, बल्कि क्वालीफाइड एमबीए जैसे लोगों को अपना प्रतिनिधि बनाते, ताकि उनके निधियों का सही इस्तेमाल हो सके और छवि न खराब हो

बस्ती। वैसे सांसद और विधायकों के कामकाज की तो समीक्षा जनता हर मोड़ गली, चौराहें गांव गढ़ी में तो करती ही रहती है, लेकिन आजकल सबसे अधिक समीक्षा और चर्चा जनप्रतिनिधियों के कथित प्रतिनिधियों की हो रही है। कहा जा रहा है, कि नेताजी ऐसे को अपना प्रतिनिधि क्यों बनाते हैं, जो कभी जनता का चुनाव न जीता हो, और जो कभी जनता का प्रिय न रहा हों? आखिर ऐसे लोगों को प्रतिनिधि बनाकर नेताजी जनता में क्या संदेश देना चाहतें हैं, और क्या हासिल करना चाहते हैं? ऐसे प्रतिनिधि के होने से क्या फायदा जो नेताजी को 100-50 वोट भी न दिला सकें। अंत में नुकसान तो नेताजी का ही होता है, प्रतिनिधि का क्या नुकसान हुआ, लेकिन लाभ अवष्य हुआ, इतना लाभ हुआ कि पूरी जिंदगी कमाते तो उतना पैसा नहीं कमा पाते जितना पांच साल में कमा लिया। गांव वालों का कहना है, कि हम लोगों को आजतक एक भी ऐसा प्रतिनिधि नहीं मिला, जिसने नेताजी की छवि की चिंता की हो, या फिर वोट बढ़ाने का प्रयास किया हो। इनकी गाड़ी शहर में ही घूमती हुई मिलेगी, और इनकी दिनचर्या अधिकारियों के बीच में रहकर गुजर जाती है, नेताओं की तरह यह भी गांव नहीं आतें। चुनाव के समय नेताजी के पीछे-पीछे घूमते अवष्य मिलेगें। तब तक जनता किसे वोट करना है, किसे नहीं करना हैं, इसका निर्णय कर चुकी होती है। सवाल करती है, कि जिनके पास सच बोलने की हिम्मत हो उसे सांसद और विधायक क्यों नहीं प्रतिनिधि बनाते? क्यों ऐसे लोगों को बनाते हैं, जो दिनरात नेताजी की चाटुकारिता में लगे रहतें हैं। ऐसे लोगों को नेताओं का प्रतिनिधि नहीं होना चाहिए जिन्हें क्षेत्र के लोग ही अपना प्रतिनिधि न मानते हो, और जिन्होंने कभी जनता का चुनाव न जीता हो, एकाध को छोड़कर अन्य ऐसे प्रतिनिधि हैं, जो डीएम और एसपी के चेंबर में घुसते ही इतना लंबा सलाम ठोंकेगें कि मानो वह सांसद और विधायक का प्रतिनिधि न होकर कोई सरकारी मुलाजिम हो, यह लोग तब तक हाथ जोड़े खड़े रहते हैंें, जब तक साहब लोग नमस्ते का जबाव नहीं दे देंतें, एकाध तो पैर भी छूते है। कहते हैं, कि एक दो को छोड़कर कोई भी ऐसा प्रतिनिधि नहीं होगा, जो नेताजी को चुनाव में 100-50 वोट दिला सके, ऐसे लोग जीताते तो नहीं हैं, अलबत्ता हराने में अवष्य मददगार साबित होतें, क्यों कि ऐसे लोगों की छवि अपने गांव गढ़ी से लेकर कस्बा और चौराहे तक खराब होती है। अनेक ऐसे प्रतिनिधि भी हैं, जो नेताजी के नाम पर अनैतिक कार्य करवा रहे हैं, नेताजी का पैड तक बेच दे रहें, नेताजी की मेहरबानी से ही ऐसे प्रतिनिधियों की आर्थिक स्थित इतनी मजबूत हो जाती है, कि वह लक्जरी गाड़ी से चलने लगतें है। चूंकि नेताजी का प्रतिनिधि नेताजी का प्रतिबिंब होता है, इस लिए उसे भी ऐसा कार्य और व्यवहार करना चाहिए, ताकि नेताजी की बदनामी न हो और उसका लाभ चुनाव में नेताजी को चुनाव में मिल सके। ऐसे लोगों को प्रतिनिधि बनाने से क्या फायदा जिनके कहने पर गांव वाले ही नेताजी को वोट न करें, कहते हैं, कि जब राज्यसभा के सदस्य और एमएलसी को छोड़कर सांसद और विधायकों को प्रतिनिधि बनाने का कोई अधिकार और प्राविधान नहीं हैं, तो क्यों कथित प्रतिनिधि बनातें है। ऐसा लगता है, कि मानो अधिकांष नेताओं ने अपने कथित प्रतिनिधियों को लूट खसोट करने का लाइसेंस दे रखा है। अगर नहीं दिया तो क्यों नहीं नेता अपने प्रतिनिधियों के क्रियाकलापों की समीक्षा करते? एक कथित प्रतिनिधि ने कहा कि भईया कोई नेता सच का आइना नहीं देखना चाहता, अगर कोई दिखाने का प्रयास करता है, तो त्वरित उसे बाहर का रास्ता का दिखा दिया जाता, नेताओं के हारने का सबसे बड़ा कारण अपनों के सच को न सुनना और नकारना रहा है। अगर सासंद और विधायक का कथित प्रतिनिधि अधिकारियों को चार लाइन का कायदे से पत्र नहीं लिख सकता तो क्या ऐसे लोग प्रतिनिधि बनने लायक हैं? साउथ के नेता कभी अपना प्रतिनिधि पाकेट के लोगों को नहीं बनाते, बल्कि क्वालीफाइड एमबीए जैसे लोगों को अपना प्रतिनिधि बनाते, ताकि उनके निधियों का सही इस्तेमाल हो सके और छवि न खराब हो और गलत/सही का पता चल सके। लेकिन यहां पर तो पूरा का पूरा चुनाव हार जाएगें, लेकिन प्रतिनिधि नहीं बदलेगें। जो भी नेता अपने प्रतिनिधियों पर आश्रित रहा, समझो उसकी लुटिया डूब गई। प्रतिनिधियों को अच्छी छवि को होना चाहिए। अभी तक नेताओं ने प्रतिनिधियों को मानदेय देना शुरु नहीं किया, कम से कम वाहन भत्ता तो मिलना ही चाहिए। नेताओं को भले ही न दिखाई दे लेकिन जनता देख रही है, कि एक प्रतिनिधि कैसे लक्जरी गाड़ी से चल रहा है। जिस तरह नेताओं के डेली के खर्चे हजारों में होते हैं, उसी तरह प्रतिनिधियों भी खर्चे हजारों में होतें हैं, और जब इन्हें वेतन और भत्ता नहीं मिलेगा तो यह पैड बेचेगें ही।

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