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आखिर ‘कानून’ के ‘शिंकजे’ में ‘फंस’ ही गए ‘रेडक्रास सोसायटी’ के ‘चेयरमैन’!
-फ्राड के आरोप में दर्ज मुकदमें में पुलिस कभी भी गिरफतार कर सकती, मेडीवर्ल्ड के प्रबंधक डा. प्रमोद कुमार चौधरी, डा. अजय चौधरी और सत्येंद्र दूबे
-जब से यह रेडक्रास सोसायटी के चेयरमैन चुने गए, तब से विवादों में घिरे रहें, अगर यह हरीश सिंह को नियम विरुद्व प्रदेश की कमेटी से न निकाले होते, तो शायद इन्हें यह दिन न देखना पड़ता
-यह दुनिया के पहले ऐसे रेडक्रास सोसायटी के चेयरमैन होगें जिनके खिलाफ फ्राड के आरोप में मुकदमा दर्ज हुआ
-यह मुकदमा एक्सरे टेक्निीसिएन रफीउदीन खान की डिग्री का दुरुपयोग करने के आरोप में पुरानी बस्ती थाने में 15 अक्टूबर 25 को दर्ज हुआ
-इसके पहले हरीश सिंह की ओर से इनके खिलाफ 20 लाख के मानहानि का केस न्यायालय में दर्ज कराया जा चुका
-एफआईआर से बचने की इनकी सारी कवायद बेकार चली गई, बस्ती से लखनऊ तक की भागदौड़ भी काम न आया, समझौता करने का पूरा प्रयास किया लेकिन नहीं हो सका, हर कीमत देने को तैयार रहे, लेकिन सफल नहीं हुए
बस्ती। मीडिया बार-बार उन कारोबारियों को सचेत करती आ रही है, जो कारोबार के साथ में राजनीति के क्षेत्र में उतरना चाहते हैं, जो लोग एकसा करते हैं, उन्हें नुकसान उठाना पड़ सकता है। कहने का मतलब कारोबारी का दायरा अगर कारोबार तक ही समिति रहता है, तो वह एक सफल कारोबारी बन सकता हैं, लेकिन अगर कोई डा. प्रमोद कुमार चौधरी की तरह बनना चाहता है, तो उसे जेल की हवा भी खानी पड़ सकती है। डाक्टर साहब, जब तक अपने मेडीवर्ल्ड अस्पताल पर ध्यान दिए थे, तब तक उन्हें कोई परेशानी नहीं हुई, लेकिन जैसे ही वह रेडक्रास सोसायटी के चेयरमैन बने तब से उन्हें अधिक परेशानी होने लगी। भले ही यह किसी के शिकार हुए, लेकिन आज जो इनके खिलाफ फ्राड के आरोप में मुकदमा दर्ज हुआ, उसके लिए इन्हें और इनके शुभचिंतकों को जिम्मेदार माना जा रहा है। देखा जाए तो आज इनके साथ में कोई खुलकर भी सामने नहीं आ रहा है, कल तक जो लोग इन्हें चेयरमैन बनाने के लिए राजनीति कर रहे थे, आज वह लोग भी नजर नहीं आ रहें है। कहना गलत नहीं होगा कि जब से यह रेडक्रास सोसायटी के चेयरमैन चुने गए, तब से विवादों में घिरे रहें, अगर यह हरीश सिंह से पंगा न लिए होते और उन्हें नियम विरुद्व प्रदेश की कमेटी से न निकाले होते, तो शायद इन्हें यह दिन न देखना पड़ता। कारोबार से भी गए, और इज्जत से भी गए। फ्राड के आरोप में दर्ज मुकदमें में पुलिस कभी भी मेडीवर्ल्ड के प्रबंधक डा. प्रमोद कुमार चौधरी, डा. अजय चौधरी और सत्येंद्र दूबे को गिरफतार कर सकती है। कहा भी जा रहा है, कि जो लोग मुकदमा दर्ज करवा सकते हैं, वह लोग गिरफतार भी करवा सकते है। यह दुनिया के पहले ऐसे रेडक्रास सोसायटी के चेयरमैन होगें जिनके खिलाफ फ्राड के आरोप में मुकदमा दर्ज हुआ। यह मुकदमा एक्सरे टेक्निीसिएन रफीउदीन खान ने उनकी डिग्री का दुरुपयोग करने के आरोप में पुरानी बस्ती थाने में 15 अक्टूबर 25 को दर्ज करवाया। जिस तरह रफीउदीन खान पर समझौता करने का दबाव बनाया गया और कोई भी कीमत देने को कहा गया, अगर उसके बाद भी एक बेरोजगार आफर को ठुकराता हैं, तो बहुत बड़ी बात है। वरना, यहां पर तो एक डाक्टर ने मात्र 1.80 लाख पर समझौता कर लिया। इसके पहले हरीश सिंह की ओर से डाक्टर साहब के खिलाफ 20 लाख के मानहानि का केस न्यायालय में दर्ज कराया जा चुका है। एफआईआर से बचने की डाक्टर साहब की सारी कवायद बेकार चली गई, बस्ती से लखनऊ तक की भागदौड़ भी काम न आया, समझौता करने का पूरा प्रयास किया, लेकिन नहीं हो सका, हर कीमत देने को तैयार रहे, फिर भी सफल नहीं हुए। इसे उस टीम की सफलता मानी जा रही है, जिसने इसे अंजाम तक पहुंचाया। क्यों कि रेडक्रास सोसायटी के चेयरमैन और मेडीवर्ल्ड के प्रबंधक डा. प्रमोद कुमार चौधरी के खिलाफ मुकदमा दर्ज करवाना आसान नहीं था। आज डाक्टर साहब अवष्य ही यह सोच रहे होगें कि अगर वह रेडक्रास सोसायटी का चेयरमैन न होते और लोगों के बहकावे में न आते तो यह दिन न देखना पड़ता। बहरहाल, डा. प्रमोद चौधरी उन लोगों के लिए एक सबक हैं, जो तालाब में रहकर मगरमच्छ से बैर रखते है। मीडिया का मैनेजमेंट भी इन्हें रुसवा होने से नहीं बचा सका। मीडिया पहले भी यह बात कह चुकी है, कि जिसने भी ऐसे मामलों में मीडिया का सहयोग लिया, उसे नुकसान उठाना पड़ा। क्यों कि मीडिया किसी को लाभ नहीं पहुंचा सकती, लेकिन नुकसान अवष्य करवा सकती, जिस तरह डा. प्रमोद चौधरी का करवाया
‘मेडीवर्ल्ड’ के ‘डा. प्रमोद चौधरी’ को ‘सीएमओ’ ने किया आवेदन ‘निरस्त’, दी ‘चेतावनी’
कहते हैं, कि जब आदमी का बुरा दिन आता है, तो उसके साथ कुछ भी अच्छा नहीं होता। यही हाल रेडक्रास सोसायटी के चेयरमैन एवं मेडीवर्ल्ड के प्रबंधक डा. प्रमोद कुमार चौधरी के साथ हुआ। एक ही दिन में इनके खिलाफ फ्राड के आरोप में मुकदमा दर्ज हुआ और उसी दिन सीएमओ ने लाइसेंस के लिए दिए गए आवेदन को निरस्त कर दिया। अस्पताल का पंजीकरण पहले ही निरस्त हो चुका है। पंजीकरण के लिए दिए गए नये आवेदन को भी निरस्त करते हुए सीएमओ की ओर से लिखित में यह चेतावनी भी दी कि जब तक अस्पताल पंजीकृत नहीं होता, तब तक अस्पताल में किसी प्रकार का चिकित्सीय ओपीडी/आईपीडी कार्य नहीं होगें, अगर किया गया तो अस्पताल को सील करने के साथ विधिक कार्रवाई की जाएगी। सीएमओ ने इनके आवेदन को इस लिए निरस्त किया कि जिस डा. मिथिलेश कुमार गौतम की डिग्री लगाई गई थी, जब उससे बात करने का प्रयास किया तो दो दिन तक बात ही नहीं हो सकी।
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