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45’ साल बाद ‘बरी’ हुए ‘सपा’ के ‘चंद्रभूषण मिश्र’

45’ साल बाद ‘बरी’ हुए ‘सपा’ के ‘चंद्रभूषण मिश्र’

-इनके साथ ही पूर्व मंत्री रामकरन आर्य, राजकुमार पांडेय, गोपालजी गौतम, कंहैयालाल चौधरी एवं मोहनलाल भी हुए बरी, सीजेएम की सक्रियता से पुराना मुकदमा हुआ समाप्त

-छात्र आंदोलन के दौरान 12 छात्रों के खिलाफ तत्कालीन एपीएन डिग्री कालेज के प्रिंसिपल पीके मैंडोल ने दर्ज कराया था मुकदमा, छात्रवृत्ति और मार्कशीट न देने पर चंद्रभूषण मिश्र की अगुवाई में चला आदंोलन

-मुकदमेें के दौरान छात्र बालमुकुंद पांडेय, संतराम आर्य, जिलाजीत भटट एवं हरिशंकर पांडेय का निधन हो गया, 12 मुलजिम रवि श्रीवास्तव को कोर्ट फरार घोषित कर चुकी

-12 में से नौ गवाहों का भी निधन हो चुका, इनमें शरद चंद्र श्रीवास्तव अमेरिका जाकर बस गए, सुभाष चंद्र उपाध्याय एवं उमादत्त त्रिपाठी अभी जिंदा

-दो दिन का आंदोलन और 45 साल चला मुकदमा, लगभग 2500 तारीखों पर अधिवक्ता रामप्रसन्न मिश्र को मेहनताना देते रहें, इस बीच न जाने कितनी बार कुर्की, वारंट हो चुका, एक बार तो कुर्की के लिए डुग्गी मुरादी भी हो चुकी

-छात्र आंदोलन से जुडा यह अब तक सबसे पुराना लंबित मुकदमा रहा, जो सीजेएम/एमपी एमएलए कोर्ट में चला

बस्ती। अगर किसी छात्र नेता को उसके द्वारा किए छात्र आंदोलन के 45 साल बाद न्याय मिलता है, तो इसे न्याय बिलकुल ही नहीं कहा जा सकता, इसे न्यायिक प्रक्रिया का दोष माना जा सकता है। जिस छात्र नेता को उसके मरने के बाद न्याय मिलेगा तो ऐसा न्याय किस का काम का। अगर किसी को 45 साल तक कानूनी लड़ाई लड़नी पड़े तो ऐसे कानून को बदल देना ही बेहतर होगा। अब जरा अंदाजा लगाइए कि आज से 45 साल पहले वर्तमान सपा नेता चंद्रभूषण मिश्र की अगुवाई में एपीएन डिग्री कालेज में छात्रवृत्ति और मार्कशीट न मिलने को लेकर 12 छात्र एक साथ आदांेलन करते हैं, सफलता तो मिलती है, लेकिन नाराज तत्कालीन प्रिंिसपल पीके मैंडोल 12 छात्र जिसमें पूर्व मंत्री रामकरन आर्य, राजकुमार पांडेय, गोपालजी गौतम, कंहैयालाल चौधरी एवं मोहनलाल, बालमुकुंद पांडेय, संतराम आर्य, जिलाजीत भटट एवं हरिशंकर पांडेय के खिलाफ मुकदमा दर्ज कराते है। मुकदमा 45 साल तक सीजेएम/एमपीएमएलए कोर्ट में चलता है। 25 सौ से अधिक तारीखों का मुलजिमों को सामना करना पड़ता। इसी बीच न जाने कितनी बार कुर्की और वारंट ़की कार्रवाई भी हुई, एक बार तो डुग्गी मुनादी तक हुआ, फिर भी छात्रों को न्याय नहीं मिला, न्याय तब मिला जब वह छात्र से नाना, दादा, परनाना और परदादा बन गए। इसी बीच न्याय पाने की आस में मुकदमें के दौरान बालमुकुंद पांडेय, संतराम आर्य, जिलाजीत भटट एवं हरिशंकर पांडेय की मौत हो गई। इतना ही नहीं 12 में से नौ गवाहों की भी मौत चुकी है। अगर यह मुकदमा कुछ दिन और चलता तो शायद ही कोई जीवित रहता। वह तो सीजेएम साहब की सक्रियता और तत्परता का परिणाम रहा कि न्याय पाने के लिए छह छात्र जीवित है, इनमें पूर्व मंत्री रामकरन आर्य, चंद्रभूषण मिश्र, राजकुमार पांडेय, गोपालजी गौतम, कंहैयालाल चौधरी एवं मोहनलाल, और बालमुकुंद पांडेय, संतराम आर्य, जिलाजीत भटट एवं हरिशंकर पांडेय की मौत हो गई, तभी तो कहा जाता है, कि ऐसा न्याय किस का काम जो मरने के बाद मिले। 12वां छात्र रवि श्रीवास्तव आज तक कोर्ट हाजिर ही नहीं हुए, कोर्ट इन्हें फरार घोषित कर चुका है, फैसला सुनाते समय इनका नाम केस से हटा दिया गया। खासबात यह रही कि मुकदमें की पैरवी रामप्रसन्न मिश्र ने शुरु से लेकर मुकदमें का निर्णय होने तक किया, यह भी जवान से बुढ़े हो गए। मुलजिमान से लेकर गवाह और अधिवक्ता तक सभी छात्र से नाना और दादा बन चुके कई तो परदादा और परनाना तक बन गएं। जिले के न्यायिक इतिहास में यह छात्र आंदोलन का निर्णय लिखा जाएगा। 45 साल तक 12 लोगों का सरकारी रिकार्ड में करेक्टर खराब रहा। असलहा का लाइसेंस तक नहीं ले सकें। नौकरी तक यह नहीं कर पाए। एक खास बात और भी रही, एक भी छात्र जेल नहीं गया। प्रिंसिपल को चंद्रभूषण मिश्र पर इस लिए गुस्सा आ गया था, कि इन्होंने उनके चेंबर में जाकर उनका हैट फेंक दिया था, चेंबर को बंद कर दिया था।

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